सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Tuesday, April 29, 2008

बदले हुए युग की सीता और अहिल्या

क्यों बनू अहिल्या मै
शापित जीवन क्यों मै काँटू
बन कर इक शिला
जीवन अगर मेरा शापित है
तो भी क्यों न उसे जीउँ मै
क्यों इंतज़ार करू मै
किसी राम के आगमन का
नहीं मै अहिल्या नहीं बनूगी
युग अब बदल गया है
मर्यादा पुरुषोतम
राम नाम
कही खो गया है
जो पत्थर मे ड़ाल सकें प्राण
और शाप ना देना मुझको
ना लेना अब कोई परीक्षा
क्योकि युग बदल गया हैं
अब ऐसी ग़लती न करना
बदले हुए युग की सीता
और अहिल्या ने अब

लक्ष्मण रेखा अपने
चारो और खीच ली हैं
जहाँ आकर तुम्हारे
शाप की परिधि समाप्त हो जाती है
और तुम्हारे भस्म होने की
सीमा शुरू हो जाती हैं
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

6 comments:

शोभा said...

रचना जी
बहुत ही सशक्त कविता लिखी है। आज नारी को यही संकल्प करना होगा। युग बदलता है, मान्यताएँ बदलती है फिर नारी पुराने आदर्शों का बोझ ढ़ोए ? आज के युग की यही पुकार है। बधाई स्वीकारें।

Anonymous said...

sach aaj ram koi nahi raha,to ahilya koi kyun bane,shapit jeevan jeene ke dil khatam,aakhari wali pankti bahut hi sashakta bana rahi hai pure kavita ke saar ko,bahut sundar.

रंजू भाटिया said...

लक्ष्मण रेखा अपने
चारो और खीच ली हैं
जहाँ आकर तुम्हारे
शाप की परिधि समाप्त हो जाती है
और तुम्हारे भस्म होने की
सीमा शुरू हो जाती हैं


बहुत ही सुंदर और सच लिखी हुई कविता है यह रचना जी ..यह पंक्तियाँ तो साहस का संचार कर देती हैं !!

kmuskan said...

क्यों इंतज़ार करू मै
sahi kaha . ab waqt badal gaya hai ab nari kyon kisi or ka intzaar kare ab nari ko apni raah khud chunni hogi

Alok Dwivedi said...

बहुत ही सशक्त कविता, समय की यही पुकार है।

Anonymous said...

शोभा mehek ,ranju , kmuskan, alok
kavita ko padney kae liyae thanks