रावण ने सीता का अपहरण किया,
कैद रखा वाटिका में,
पर तृण की ओट का मान रखा...
अपने ही नाश यज्ञ में उसने,
ब्राह्मण कुल का धर्म निभाया,
राम के हाथों प्राण तजे,
सीधा स्वर्ग को प्राप्त किया...
जाने कितने युग बीते!!!!
आज भी रावण को जलाते हैं,
और सत्य की जीत मनाते हैं !
पर गौर करो इस बात पे तुम,
गहराई से ज़रा मनन करो,
रावण को वे ही जलाते हैं,
जो राम नहीं कहलाते हैं,
ना ही रावण के चरणों की,
धूल ही बन पाते हैं...
जाने कितनी सीताओं का,
वे रोज़ अपहरण करते हैं...
ना रखते हैं किसी तृण का मान,
बन जाते हैं पूरे हैवान ...
ना राम का आना होता है ,
ना न्याय की आंखें खुलती हैं,
सीता कलंकिनी होती है ,
रावण भी फूट के रोता है!!!!!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Tuesday, April 22, 2008
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8 comments:
जाने कितनी सीताओं का,
वे रोज़ अपहरण करते हैं...
ना रखते हैं किसी तृण का मान,
बन जाते हैं पूरे हैवान ...
ना राम का आना होता है ,
ना न्याय की आंखें खुलती हैं,
सीता कलंकिनी होती है ,
बहुत सही लिखा है आपने रश्मि जी ...रोज़ अब ऐसी खबर आना जैसे एक रूटीन बन गया है ..और यह दिन बा दिन बढता ही जा रहा है ,..इस कविता में आपने आज के मर्म को छुआ है
bahut hee sunder aur sateek har din kii kehani hogayee haen
kavita bahut sunder haen bahut man mae gherae tak utar jaane wali
रश्मि जी आपकी ये कविता आज की तस्वीर दिखाती है।
आपने "रावण रोता है" के माध्यम एक बहुत ही प्रासंगिक विषय को प्रभावशाली तरीके से पेश किया है | आपने बिलकुल सही कहा की वो रावण जो सदियों से प्रतीक रहा है बुराई का, अधर्म का, अमर्यादित आचरण का, लेकिन उसके अन्दर भी कई वेसे गुण थे जिसमे से एक का वर्णन आपने अपनी कविता के माध्यम से किया है, आज के so called सभ्य समाज के लिए दुर्लभ बना हुआ है और आचरण में लाने योग्य है | यदि कुछ जलाना है तो समाज में गहरे तक व्याप्त हो चुकी शर्मनाक और संस्कारहीन मानसिकता को जलाना होगा जिसके सामने बुराई का प्रतीक रावण भी सभ्य और सुसंस्कृत प्रतीत होता है |
ना रखते हैं किसी तृण का मान,
बन जाते हैं पूरे हैवान ...
ना राम का आना होता है ,
ना न्याय की आंखें खुलती हैं,
सीता कलंकिनी होती है ,
rashmi ji ye aaj ka bhayanak swarup hai aakhari wali kuch panktiyan bahut bahut sundar bani hai,rawan rota hai se to puri ki puri kavita ke bhav aur khubsurati badh gayi hai.
रश्मि जी
बहुत सही लिखा है तुमने। नारी के सम्मान को रावण ने कभी भंग नहीं किया।
रावण ने सीता का अपहरण किया,
कैद रखा वाटिका में,
पर तृण की ओट का मान रखा...
कविता के भाव दिल पर गहरा प्रभाव करते हैं. सरल सहज शैली में सुन्दर रचना.
बोलो तुम कब मारोगे अपने भीतर के रावण को
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