मेरी आत्मजा
मेरा प्रिय अंग
आज देती हूँ तुम्हें
सीखें चन्द
नारी समाज की रीढ़
सृष्टि का श्रृंगार है
उसकी कमजोरी
सृष्टा की हार है
अन्याय को सहना
स्वयं अन्याय है
किन्तु परिवार में
त्याग अपरिहार्य है
तू धीर-गम्भीर और
कल्याणी बनना
किसी को दुःख दे
ऐसे सपने मत बुनना
वासना की दृष्टि को
शोलों से जलाना
कभी निर्बलता से
नीर ना बहाना
हृदय से कोमल
सबका दुःख हरना
अन्यायी आ जाए तो
शक्ति रूप धरना
लड़की हो इसलिए
सदा सुख बरसाना
किन्तु बिटिया--
- बस लड़की ही
मत रह जाना-
मेरा प्रिय अंग
आज देती हूँ तुम्हें
सीखें चन्द
नारी समाज की रीढ़
सृष्टि का श्रृंगार है
उसकी कमजोरी
सृष्टा की हार है
अन्याय को सहना
स्वयं अन्याय है
किन्तु परिवार में
त्याग अपरिहार्य है
तू धीर-गम्भीर और
कल्याणी बनना
किसी को दुःख दे
ऐसे सपने मत बुनना
वासना की दृष्टि को
शोलों से जलाना
कभी निर्बलता से
नीर ना बहाना
हृदय से कोमल
सबका दुःख हरना
अन्यायी आ जाए तो
शक्ति रूप धरना
लड़की हो इसलिए
सदा सुख बरसाना
किन्तु बिटिया--
- बस लड़की ही
मत रह जाना-
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
8 comments:
किन्तु बिटिया--
- बस लड़की ही
मत रह जाना-
bahut sunder likha hae shobha
हृदय से कोमल
सबका दुःख हरना
अन्यायी आ जाए तो
शक्ति रूप धरना
लड़की हो इसलिए
सदा सुख बरसाना
किन्तु बिटिया--
- बस लड़की ही
मत रह जाना-
sach shobha ji bahut dil ke gehrai tak utar gayi aapki kavita,nari ki komal man bhi aur shakti ka ehsaas bhi,bahut bahut sundar.
हृदय से कोमल
सबका दुःख हरना
अन्यायी आ जाए तो
शक्ति रूप धरना
आपकी यह कविता मुझे बहुत पसंद आई है शोभा जी यह एक प्रेरणा देती लग रही है
नारी समाज की रीढ़
सृष्टि का श्रृंगार है
उसकी कमजोरी
सृष्टा की हार है
अन्याय को सहना
स्वयं अन्याय है
किन्तु परिवार में
त्याग अपरिहार्य है
Bahoot unche aur achche vichar. Ek behtar rachna.
शोभा जी,
बहुत सुन्दर रचना है... स्त्रीयां बहुगुण सम्मपन होती हैं...लज्जा, सहनशीलता जहां नारी के सहज गुण है... वहीं उसकी आपार शक्ति रूप से सब परिचित हैं... लिखती रहें
bas ladki hi mat rah jaana,
bahut baaten is ek seekh me chupi hai,
bahut sahi arth diye hain-
gr8
हृदय से कोमल
सबका दुःख हरना
अन्यायी आ जाए तो
शक्ति रूप धरना ------
स्त्री स्नेह और साहस का रूप है. सन्देश देती हुई प्रभावशाली रचना.
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