सम्मानित , अपमानित होती हूँ मै
क्योंकी मै स्त्री हूँ , माँ हूँ , बहिन हूँ , पत्नी हूँ
उनसे तो मै फिर भी लाख दर्जे अच्छी हूँ
जिनका कोई मान समान ही नहीं हैं
जब भी
सम्मानित , अपमानित होती हूँ मै
जिन्दगी की लड़ाई मै , आगे ही बढ़ी हूँ
औरो से उपर ही उठी हूँ
नहीं तोड़ सके हैं वह मेरा मनोबल
जो करते है सम्मानित , अपमानित मुझे
क्योंकी मैने ही जनम उनको दिया है
दे कर अपना खून जीवन उनको दिया है
दे कर अपना दूध बड़ा उनको किया है
नंगा करके मुझे जो खुश होते है
भूल जाते है उनके नंगेपन को
हमेशा मैने ही ढका है
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Friday, April 18, 2008
सम्मानित , अपमानित होती हूँ मै
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3 comments:
कविता में कथ्य प्रमुख होता है रुप गौण, लेकिन इस का अर्थ नहीं कि केवल कथ्य ही कविता होती है।
जब भी
सम्मानित , अपमानित होती हूँ मै
जिन्दगी की लड़ाई मै , आगे ही बढ़ी हूँ
औरो से उपर ही उठी हूँ
कई बार सीधी दिल से निकली बात दिल को छू जाती है उस वक्त सिर्फ़ पढने पर यही ध्यान रहता है कि जो लिखा गया वह हमारे दिल के बहुत करीब था इस रचना को पढ़ते हुए रचना जी मैंने तो यही महसूस किया ..और जो दिल को छुए वही असली कविता है .)
मुक्त छन्द की कविता में स्त्री मन के भाव मन को छू गए.
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