सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, April 24, 2008

आधुनिक नारी


आधुनिक नारी
बाहर से टिप-टाप
भीतर से थकी-हारी ।
सभ्य,सुशिक्षत,सुकुमार
फिर भी उपेक्षा की मारी।
समझती है जीवन में
बहुत कुछ पाया है
नहीं जानती-
ये सब छल है, माया है।
घर और बाहर दोनो में
जूझती रहती है।
अपनी वेदना मगर
किसी से नहीं कहती है ।
संघर्षों के चक्रव्यूह
जाने कहाँ से चले आते हैं ?
विश्वासों के सम्बल
हर बार टूट जाते हैं ।
किन्तु उसकी जीवन शक्ति
फिर उसे जिला जाती है ।
संघर्षों के चक्रव्यूह से
सुरक्षित आजाती है ।
नारी का जीवन
कल भी वही था-
आज भी वही है ।
अन्तर केवल बाहरी है ।
किन्तु
चुनौतियाँ हमेशा से
उसने स्वीकारी है ।
आज भी वह माँ-बेटी
तथा पत्नी का कर्तव्य
निभा रही है ।
बदले में समाज से
क्या पा रही है ?
गिद्ध आधुनिक नारी
बाहर से टिप-टाप
भीतर से थकी-हारी ।
दृष्टि आज भी उसे
भेदती है ।
वासना आज भी
रौंदती है ।
आज भी उसे कुचला जाता है ।
घर,समाज व परिवार में
उसका देने का नाता है ।
आज भी आखों में आँसू
और दिल में पीड़ा है ।
आज भी नारी-
श्रद्धा और इड़ा है ।
अन्तर केवल इतना है
कल वह घर की शोभा थी
आज वह दुनिया को महका रही है ।
किन्तु आधुनिकता के युग में
आज भी ठगी जा रही है ।
आज भी ठगी जा रही है ।


© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

5 comments:

Anonymous said...

hi shobha
"आज भी ठगी जा रही है ।" yae bahut sateek haen so kal mae bhi is per aap kii baat ko aagey badhaaugi
aur ek baat aap ki kavita mae ek badllav { pataa laagaa } kiyaa haen kyaa pasand ayaa ??

रश्मि प्रभा... said...

aaj bhi thagi jaa rahi hai......
yah sach aapne bade sateek dhang se prastut kiya hai,
abhi bhi use dekhna hai zor aur aajmaana hai khud ko......

रंजू भाटिया said...

सही लिखा है आपने शोभा
विश्वासों के सम्बल
हर बार टूट जाते हैं ।
किन्तु उसकी जीवन शक्ति
फिर उसे जिला जाती है ।.
शायद अपने नारी स्वभाव के कारण..बदलाव आएगा पर अभी धीरे धीरे ..

Keerti Vaidya said...

gud job

शोभा said...

रचना जी
आपने कविता को और सुन्दर बना दिया है। और जो नया प्रयोग किया है वह अच्छा लगा। आपकी प्रतिभा को सलाम।