अनैतिकता बोली नैतिकता से
मंडियों , बाजारों और कोठो
पर मेरे शरीर को बेच कर
कमाई तुम खाते थे
अब मै खुद अपने शरीर को
बेचती हूँ , अपनी चीज़ की
कमाई खुद खाती हूँ
तो रोष तुम दिखाते हो
मनोविज्ञान और नैतिकता
का पाठ मुझे पढाते हो
क्या अपनी कमाई के
साधन घट जाने से
घबराते हों इसीलिये
अनैतिकता को नैतिकता
का आवरण पहनाते हो
ताकि फिर आचरण
अनैतिक कर सको
और नैतिक भी बने रह सको
मंडियों , बाजारों और कोठो
पर मेरे शरीर को बेच कर
कमाई तुम खाते थे
अब मै खुद अपने शरीर को
बेचती हूँ , अपनी चीज़ की
कमाई खुद खाती हूँ
तो रोष तुम दिखाते हो
मनोविज्ञान और नैतिकता
का पाठ मुझे पढाते हो
क्या अपनी कमाई के
साधन घट जाने से
घबराते हों इसीलिये
अनैतिकता को नैतिकता
का आवरण पहनाते हो
ताकि फिर आचरण
अनैतिक कर सको
और नैतिक भी बने रह सको
3 comments:
रचना जी
गज़ब की कविता लिखी है आपने और सत्य को भी बहुत सटीक रूप में उजागर किया है। पढ़कर आनन्द आ गया। बधाई स्वीकारें ।
बड़िया लिखा है
रचना जी बहुत ही जबरदस्त भाव लिए हुए हैं यह कविता ..अच्छा लगा इस को पढ़ना !
Post a Comment