सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, April 23, 2008

एक दिन तो मुझे अपनी पहचान मिल जायेगी ..

हर रोज़ खुद से यही प्रश्न मैं कई बार करती हूँ
कौन हूँ मैं ?क्या पहचान है मेरी अब भी यहाँ
क्या आज भी मैं ....
अग्नि परीक्षा देती हुई हूँ कोई सीता
या आज भी सिर्फ़ भोग्या ही कहलाती हूँ

हूँ मैं ही सृजनहार भी ,...
वही मैं दुर्गा बन के कहर भी ढाती हूँ
पर आज भी मेरा गर्भ में आहट लेना
क्यों चिंता का विषय बन जाता है
क्यों आज भी मेरा बचपन
"निठारी का किस्सा " बन जाता है

कभी बना के सती मुझे
तिल तिल करके जला देते हैं
कभी मॉडर्न आर्ट के बहाने
मेरी देह सज़ा देते हैं

कितने ही ऐसे अनसुलझे सवाल
दिल मैं हलचल मेरे मचा देते हैं
बीतते पल क्यों वही फ़िर से
कहानी पुरानी दोहरा लेते हैं ?

एक दिन तो मेरे बिखरे वजूद को
पहचान अपनी मिल जायेगी
आंखों में आजादी के प्रतिबिम्ब को
यह दुनिया समझ और देख पाएगी !!
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8 comments:

आलोक साहिल said...

ranju ji,mujhe lagta hai ki nari ke jitn rupon ko aaj tak maine apni jati jindagi mein dekha/paya/mahsus kiya usase kahin jyada rup aapki kavita ne mujhe dikhaye,adbhut...
alok singh "sahil"

Anonymous said...

maeri baat nav pravah nae keh dii mae kyaa kahun
tareef kavita kii karu yaa likhney vale ki

रश्मि प्रभा... said...

एक दिन तो मेरे बिखरे वजूद को
पहचान अपनी मिल जायेगी
आंखों में आजादी के प्रतिबिम्ब को
यह दुनिया समझ और देख पाएगी !!.......
इस सकारात्मकता को अवश्य दुनिया जानेगी,बहुत खूब

राकेश खंडेलवाल said...

एक युग ने है बदल दी मानसिकता हम सभी की
भूल बैठे जो धरोहर है हमारी संस्कॄति की
थे हमारे मूल्य, बसते देवता हर उस जगह पर
जिस जगह पूजा हुआ करती है जननी-प्रकॄति की
किन्तु जकड़ा दासताओं के दुशालों ने हमें यों
हम स्वयं की अस्मिता को भूल कर भटके हुए हैं
इसलिये सन्देह करते अब रहे सामर्थ्य पर भी
हम स्वयं के चक्रव्यूहों में फ़ंसे भटके हुए हैं

सरस्वती प्रसाद said...

sari umra ek pahchaan ke liye ek stri chalti hai,nirantar........mera aashirwaad hai,yah pahchaan milegi.

शोभा said...

रंजू जी
बहुत सुन्दर लिखा है आपने। नारी के हृदय की वेदना उभर कर आई है। पर नारी को अपनी पहचान खुद बनानी होगी।

सुनीता शानू said...

एक आशावादी कविता...कोशिश करने से क्या नही हो सकता? औरत की पहचान ये संसार है इस सृष्टि का रचयिता ईश्वर है एक औरत एक माँ को भी सदियों से इसी रूप में देखा जाता था...

kavi kulwant said...

नारी को जितनी महत्ता, पूर्णता, मान, सम्मान, दुर्गा, देवी स्वरूपा, माँ, ममता, यहां अपने भारत में दिया गया है, शायद ही दुनिया के किसी भी देश ने दिया हो... भारत में घर परिवार एक नारी के अपनी माँ से प्राप्त गुण, शिक्षा, संस्कृति.. के आधार पर चलते हैं...बिना नारी के घर को घर नही माना जाता... कुछ नारियां अगर अर्धनग्न हैं तो अपनी इच्छा से हैं.. शायद उनकी नजर में वह स्वतंत्रता होगी.. हम पाश्चात्य और भारतीय मूल्यों में घिरकर परस्पर विरोधाभास में उलझने लग गए हैं... महाभारत काल में भी नारी को नियोग प्रथा का हक प्राप्त था...कहने को बहुत कुछ है.. अभी इतना ही.. हां नारी को स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए..
कवि कुलवंत