सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, April 19, 2008

कब तक मेरे किये हुए कामो को मेरी उपलब्धि नहीं माना जाएगा ??

देश को आजाद हुए , होगये है वर्ष साठ
पर आज भी जब बात होती है बराबरी कि
तो मुझे आगे कर के कहा जाता है
लो ये पुरूस्कार तुम्हारा है
क्योंकी तुम नारी हो ,
महिला हो , प्रोत्साहन कि अधिकारी हो
देने वाले हम है , आगे तुम्हे बढाने वाले भी हम है
मजमा जब जुडेगा , फक्र से हम कह सकेगे
ये पुरूस्कार तो हमारा था
तुम नारी थी , अबला थी , इसलिये तुम दिया गया
फिर कुछ समय बाद , हमारी भाषा बदल जायेगी
हम ना सही , कोई हम जैसा ही कहेगा
नारियों को पुरूस्कार मिलता नहीं दिया जाता है
दिमाग मे बस एक ही प्रश्न आता
और
कब तक मेरे किये हुए कामो को मेरी उपलब्धि नहीं माना जाएगा ??
और
कब तक मेरे नारीत्व को ही मेरी उपलब्धि माना जायगा ??

3 comments:

रश्मि प्रभा... said...

अक्सर यही कहकर,
प्रतिभावों को उपेक्षित कर दिया जाता है,
बेहतर हो हम ऐसे शब्दों से सजे पुरस्कार को स्वीकार न करें......
तो-इस प्रश्न का सशक्त जवाब मिल जायेगा और कोई बदलाव हो......

रंजू भाटिया said...

हम ना सही , कोई हम जैसा ही कहेगा
नारियों को पुरूस्कार मिलता नहीं दिया जाता है
दिमाग मे बस एक ही प्रश्न आता
और
कब तक मेरे किये हुए कामो को मेरी उपलब्धि नहीं माना जाएगा ??

यहाँ आपने उस मर्म को छुआ है जो अपनी मेहनत के बल पर पाने वाली उपलब्धि हर नारी इसको झेलती जरुर है ..

Anonymous said...

sahi baat hai,kab tak nari ke kaam ki ganana nahi ki jayegi,kab tak uski buddhimatta aur shakti par tashere kase jayenge,