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धनिया लेटी है अपनी खाट पर
देख रही है सुंदर सपना
सोच रही है इस दुनिया में
कोई तो होगा अपना,
वो खुश है आज, बहुत खुश
क्योंकि कुछ ही महीनों के बाद
वो बनने वाली है माँ
उसके मन में
माँ बनने की उमंग है
दिल में ममता की तरंग है,
सोच रही है
मेरे जैसी होगी मेरी बेटी
जो घूमेगी घर के आँगन में
रुनझुन-रुनझुन,
जो बोलेगी
अपनी तोतली बोली में
और कहेगी ‘माँ जला छुन
जब मेली छादी होदी न
सुंदल-सा दूल्हा आएदा
मैं दोली में बैठतल
अपनी छुछराल चली जाऊँदी !
पर माँ लोना नईं
जब तू बुलाएगी ना
मैं झत से दौलतल
तेरे पास चली आऊँगी
या फिल तुझे बुला लूँदी अपने पाछ !’
धनिया खुश थी मन ही मन
उसके दिल में
प्रसन्नता की हिलोरें उठ रही थीं
उसने पहले ही सोच लिया था
कि अपनी चाँद-सी बेटी को
पढ़ना सिखाऊँगी,
लिखना सिखाऊँगी
और उससे खत लिखवाऊँगी,
फिर मैं अपने मन की बात को
अपनी अम्मा और बापू तक
पहुँचा सकूँगी !
इन्हीं विचारों में उलझी
धनिया बड़ी बेसब्री से
सुबह होने का
कर रही थी इंतज़ार
सोच रही थी बारंबार
कल जब अल्ट्रासाउंड की
रिपोर्ट आएगी घर पर
तो खुश होंगे
मेरे साथ-साथ सभी परिवारी-जन
करेंगे इंतज़ार
नन्ही-सी परी के आने का !
पास-पड़ौस के सभी लोग
देने आएँगे बधाई
मेरे माँ-बापू भी मनाएँगे उत्सव
गाए जाएँगे मंगलगीत
मिलेगी मुझे सबकी प्रीत !
अपनी परी का नाम
रखूँगी चमेली जो बड़ी होकर बनेगी
अनोखी, अलबेली
रक्षाबंधन के दिन
भैया की सूनी कलाई पर
बाँधेगी राखी
भैया भी उसको
देगा रक्षा का वचन !
मेरे सपनों की परी
जब और बड़ी होगी
तो घर के कामों में
बटाएगी मेरा हाथ
मेरे थकने पर प्यार से
मेरा सिर सहलाएगी,
अपने दादी-बाबा की
वो बनेगी लाडली
घर में बनेगी सबकी दुलारी
दोपहर को खेत पर
अपने बापू के लिए
लेकर जाएगी रोटी
तब मेरे बुझे मन को
और थके तन को
मिलेगा थोड़ा-सा आराम
मुझे मिलेगा मेरा खोया हुआ
अपना ही सुंदर नाम !
यही सोचते-सोचते धनिया
न जाने कब सो गई
मीठे-मीठे सपनों में खो गई
मुँह अँधेरे ही वो उठकर बैठ गई
जब उठी तो थी बहुत
उल्लसित और प्रफुल्लित,
जल्दी-जल्दी कर रही थी
घर के सारे काम
कामों से निपटकर
वह बैठी ही थी
कि अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट लेकर
उसका पति मुँह लटकाए आया
समझ नहीं आ रहा था
उसकी उदासी का राज़
पूछने पर उसने बताया
‘रिपोर्ट नहीं है अच्छी’
सभी थे चिंतामग्न
सभी थे परेशान
अनहोनी की आशंका से
सब तरफ थी खामोशी ,चुप्पी
और सभी कर रहे थे इंतज़ार
रिपोर्ट को जानने का !
छाई हुई खामोशी को तोड़ते हुए
धनिया का पति बोला ¬–
‘ रिपोर्ट में तो लड़की बताई है ‘
घर के सभी सदस्यों ने
ठंडी साँस ली और बोले-
‘ इसमें चिंता की क्या बात है
अब तो हमारे देश ने
बड़ी उन्नति कर ली है ‘
घर के बुजुर्ग बोले-
‘ चिंता मतकर
डॉक्टर से मिलकर
इस आफत से मुक्ति पा लेंगे
इस बार नहीं
तो कोई बात नहीं
अगली बार
घर का चिराग पा लेंगे !’
पर किसी ने
उस माँ के दिल की पीड़ा को
न समझा, न जाना
न उसकी मन:स्थिति को पहचाना !
वह बुझी-सी, टूटी-सी
उठकर चली गई अंदर
और बहाती रही आँसू
वह अपने मन की टीस को
किसी से बाँट भी तो नहीं सकती
अपने मन की बात
किसी से कह भी तो नहीं सकती
कहेगी तो सुनेगा कौन
इसीलिए तो वो है मौन !
धनिया की आँखें निरंतर
बरस रही थीं झर-झर
मानो कह रही हों, सुनो,
समाज के कर्णधारो ! सुनो
समाज के सुधारको सुनो,
बेटों के चाहको सुनो न !
मेरा तो बस यही है कहना
ऐसे सोच को समाज के
दिलो-दिमाग से पूरी तरह
निकालकर फेंक दो न !
और उन सबको समझाओ
जो बेटी नहीं, चाहते हैं बेटा !
यदि देश में इसी तरह
सताई जाती रहेंगी बेटियाँ
होती होती रहेंगी भ्रूण हत्याएँ
तो एकदिन ऐसा आएगा
जब हमारे चारों ओर
होंगे केवल बेटे-ही-बेटे
दु:ख-दर्द को मिटाने वाली
बेटियाँ कहीं दूर तक
नज़र नहीं आएँगीं,
और एकदिन ऐसा आएगा
जब पुरुष रह जाएगा अकेला
अच्छा नहीं लगेगा
उसे दुनिया का मेला,
और फिर वह अकेले ही अकेले
ढोएगा जीवन का ठेला !
डॉ. मीना अग्रवाल
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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8 comments:
वाह, कमाल कि रचना है, बहुत ही मर्मस्परसी, आँखें नम हो गयी!
thanks for such a beautiful poem
कविता इतनी हृदयग्राही है कि धनिया की मनो
व्यथा के साथ हमें भी बहा ले गयी ! बहुत मर्मस्प
र्शी रचना !
उम्दा रचना
धनिया का मर्म घर घर है । अति संवेदनयुक्त ।
marmik rachna.
दु:ख-दर्द को मिटाने वाली
बेटियाँ कहीं दूर तक
नज़र नहीं आएँगीं,
और एकदिन ऐसा आएगा
जब पुरुष रह जाएगा अकेला
अच्छा नहीं लगेगा
उसे दुनिया का मेला,
और फिर वह अकेले ही अकेले
ढोएगा जीवन का ठेला !
मार्मिक व सत्य को उद्घाटित करती बेहतरीन रचना
आप सबने मेरी रचना की सराहना की. मैं हृदय से सबकी बहुत-बहुत आभारी हूँ.
मीना
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