सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, June 2, 2010

ऐसा क्यों होता है !

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ऐसा क्यों होता है
जब भी कोई शब्द
तुम्हारे मुख से मुखरित होते हैं
उनका रंग रूप, अर्थ आकार,
भाव पभाव सभी बदल जाते हैं
और वे साधारण से शब्द भी
चाबुक से लगते हैं,
तथा मेरे मन व आत्मा सभी को
लहूलुहान कर जाते है !

ऐसा क्यों होता है
जब भी कोई वक्तव्य
तुम्हारे मुख से ध्वनित होता है
तुम्हारी आवाज़ के आरोह अवरोह,
उतार चढ़ाव, सुर लय ताल
सब उसमें सन्निहित उसकी
सद्भावना को कुचल देते है
और साधारण सी बात भी
पैनी और धारदार बन
उपालंभ और उलाहने सी
लगने लगती है
और मेरे सारे उत्साह सारी खुशी को
पाला मार जाता है !

ऐसा क्यों होता है
तुमसे बहुत कुछ कहने की,
बहुत कुछ बाँटने की आस लिये
मैं तुम्हारे मन के द्वार पर
दस्तक देने जब आती हूँ तो
‘प्रवेश निषिद्ध’ का बोर्ड लटका देख
हताश ही लौट जाती हूँ
और भावनाओं का वह सैलाब
जो मेरे ह्रदय के तटबंधों को तोड़ कर
बाहर निकलने को आतुर होता है
अंदर ही अंदर सूख कर
कहीं बिला जाता है !
और हम नदी के दो
अलग अलग किनारों पर
बहुत दूर निशब्द, मौन,
बिना किसी प्रयत्न के
सदियों से स्थापित
प्रस्तर प्रतिमाओं की तरह
कहीं न कहीं इसे स्वीकार कर
संवादहीन खड़े रहते हैं
क्योंकि शायद यही हमारी नियति है !

साधना वैद

9 comments:

nilesh mathur said...

मैं तुम्हारे मन के द्वार पर
दस्तक देने जब आती हूँ तो
‘प्रवेश निषिद्ध’ का बोर्ड लटका देख
हताश ही लौट जाती हूँ ,

बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना!

दिलीप said...

waah samvedna se bhari...lajawaab rachna...hriday khula pada hai...bahut sundar...

sanu shukla said...

सदियों से स्थापित
प्रस्तर प्रतिमाओं की तरह
कहीं न कहीं इसे स्वीकार कर
संवादहीन खड़े रहते हैं
क्योंकि शायद यही हमारी नियति है !

बहुत सुंदर रचना है...

प्रज्ञा पांडेय said...

अगर उनके शब्द चाबुक हैं तो हमारे क्यों ना हों जाएँ !मैं तुम्हारे मन के द्वार पर
दस्तक देने जब आती हूँ तो
‘प्रवेश निषिद्ध’ का बोर्ड लटका देख
हताश ही लौट जाती हूँ ,
इतनी असहाय परनिर्भरता क्यों ? क्या मुक्ति के रास्ते नहीं हैं ? .....

आचार्य उदय said...

आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !

आचार्य जी

मीनाक्षी said...

कविता के भाव मन को छू जाते हैं...

शोभना चौरे said...

antrman ko chooti nari ke hrdy ki svednao ko prkat kati sundar abhivykti

आचार्य उदय said...

आईये जानें .... मैं कौन हूं!

आचार्य जी

mridula pradhan said...

wah. kya boloon iske baad.