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कितनी बार...
कितनी बार तुम मुझे अहसास कराते रहोगे
कि मेरी अहमियत तुम्हारे घर में,
तुम्हारे जीवन में
मात्र एक मेज़ या कुर्सी की ही है
जिसे ज़रूरत के अनुसार
कभी तुम बैठक में,
कभी रसोई में तो कभी
अपने निजी कमरे में
इस्तेमाल करने के लिए
सजा देते हो
और इस्तेमाल के बाद
यह भी भूल जाते हो कि
वह छाया में पड़ी है या धूप में !
कितनी बार तुम मुझे याद दिलाओगे
कि मैं तुम्हारे जीवन में
एक अनुत्पादक इकाई हूँ
इसलिए मुझे कैसी भी
छोटी या बड़ी इच्छा पालने का
या कैसा भी अहम या साधारण
फैसला लेने का
कोई हक नहीं है
ये सारे सर्वाधिकार केवल
तुम्हारे लिए सुरक्षित हैं
क्योंकि घर में धन कमा कर
तो तुम ही लाते हो !
कितनी बार तुम मुझे याद दिलाओगे
कि हमारे साझे जीवन में
मेरी हिस्सेदारी सिर्फ सर झुका कर
उन दायित्वों को ओढ़ने
और निभाने की है
जो मेरे चाहे अनचाहे
तुमने मुझ पर थोपे हैं,
और तुम्हारी हिस्सेदारी
सिर्फ ऐसे दायित्वों की सूची को
नित नया विस्तार देने की है
जिनके निर्वहन में
तुम्हारी भागीदारी शून्य होती है
केवल इसलिए
क्योंकि तुम ‘पति’ हो !
साधना वैद
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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7 comments:
bahut sunder shabdon men eka aam aurat ki sthiti ki bayan kar diya. shayad isa samaaj men 65 pratishat mahilaayen chahe ve grihani hon ya phir naukari pesha unaki sthiti abhi bhi yahi hai. vo sarvopari hai aur usake banaye kaanoon aur daayitvon ko dhona usaki niyati.
हर भारतीय पत्नी कि कहानी कह दी है ....मर्मस्पर्शी
ati sundar...
bahut gahri chot ki hai.......keep it up.
sashakt abhivyakti...
kisi ek pati ko dhyan men rakh kar yeh rchna apni chhap chhorti hai
sab ko ek taraju men tolna mere vichar se thiik nahi hai sundar rachna ke liye badhai ho
सराहना के लिए धन्यवाद सुनील जी ! यहाँ आम पतियों की सोच और आम पत्नियों की व्यथा को अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है मैंने ! अपवाद हर जगह मिल जाते हैं ! यह रचना उन अपवादों को ध्यान में रख कर नहीं रची गयी है ! ज़रा गहराई से समाज के उच्च और निम्न मध्य वर्ग के घरों में झाँक कर देखिये कमोबेश हर घर में आपको यही कहानी दिखाई देगी !
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