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अपने सपनों को नई ऊँचाई देने के लिये
मैंने बड़े जतन से टुकड़ा टुकडा आसमान जोडा था
तुमने परवान चढ़ने से पहले ही मेरे पंख
क्यों कतर दिये माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
अपने भविष्य को खूबसूरत रंगों से चित्रित करने के लिये
मैने क़तरा क़तरा रंगों को संचित कर
एक मोहक तस्वीर बनानी चाही थी
तुमने तस्वीर पूरी होने से पहले ही
उसे पोंछ क्यों डाला माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
अपने जीवन को सुख सौरभ से सुवासित करने के लिये
मैंने ज़र्रा ज़र्रा ज़मीन जोड़
सुगन्धित सुमनों के बीज बोये थे
तुमने उन्हें अंकुरित होने से पहले ही
समूल उखाड़ कर फेंक क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
अपने नीरस जीवन की शुष्कता को मिटाने के लिये
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
और अगर हूँ भी तो क्या यह दोष मेरा है ?
साधना वैद
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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7 comments:
कई प्रकार के भाव सहित बेटी के दर्द की सुन्दर अभिव्यक्ति साधना जी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
अति सुन्दर
अगर बेटी होना इतना बड़ा गुनाह है तो जन्म नहीं देना चाहिए, क्योंकि आप उसकी साँसों पर अपना हक़ जता कर उसे ख़त्म कर सकते हैं तो पैदा होते है ख़त्म कर दो. इतनी फजीहत तो दुनियाँ के सामने न हो, न माँ की और न बेटी की.
उस बेटी के दर्द को बहुत खूबसूरत शब्दों से बाँधा है. प्रशंसनीय रचना.
एक बेटी के दर्द को बखूबी उकेरा है।
प्रभावशाली रचना!
बेटी के दर्द को बखूबी उकेरा है
सुन्दर रचना
A beautiful poem.
Asha
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