सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Friday, August 1, 2008

क्या शीर्षक दूं इस जिन्दगी की जी हुई सचाई को , नहीं जानती

पिता की मृत्यु के बाद
आया बेटा विदेश से
और बोला माँ से साधिकार
" नहीं रहोगी अकेले तुम
अब यहाँ । तुम अब मेरे
साथ चलोगी "
आँखों मे आशिशो के
आँसू भर कर माँ ने
सर पर हाथ रखा और कहा
" मै कहाँ जाऊंगी बेटा
इस घर का क्या होगा ?
जिसे मैने तुम्हारे पिता
के साथ बनाया है । "
बेटे ने कहा
" माँ अब इस मकान को
रख कर हमे क्या करना है ?

बेच दूँगा मै इसे
सब कागज तैयार है
तुमको बस दस्तखत करने है
मेरे रहते क्यो परेशान हों तुम ? "
वर्षो से जिनके साथ रही हूँ
एक बार उन पड़ोसियो से भी
राय लेलू ये सोच कर
पड़ोस मे गयी माँ
बोले पड़ोसी
" आप तो तकदीर वाली हों
आज कल तो बच्चे पूछते नहीं है
जाओ कुछ बेटे का भी सुख उठाओ
वेसे तकलीफ तो
हम यहाँ भी नहीं होने देते
सालो के सुख दुःख साथ निभाये है
बाक़ी साल भी निभाते
पर आप जाओ
राय यही है हमारी "
माँ के घर को
अपना मकान कह कर
बेचा बेटे ने और पुत्र धर्म
का पालन करते हुये
माँ का टिकट बनवाया
और अपने साथ ले गया
कुछ १२ घंटो बाद
पड़ोसी के घर पर
फ़ोन की घंटी बजी
एअरपोर्ट से पुलिस का फ़ोन था
एक वृद्धा पिछले १२ घंटो से
एअरपोर्ट के विसिटर लाउंज मे
बेठी है उसके पास कोई पासपोर्ट
कोई टिकट और पैसा नहीं है
उसका नाम किसी फ्लाईट मे भी नहीं है
ज्यादा कुछ नहीं बोल पा रही है
अपने बेटे का जो नाम बता रही है
वह सिंगापूर एयरलाइंस से
९ घंटे पहले जा चूका है
उसमे भी इनका कोई नाम नहीं था
आप का फ़ोन नंबर भी
बड़ी मुश्किल से बताया है
तुरंत जाकर पड़ोसी उन्हे घर ले आये
और पिछले दो साल से
अपने बिके हुए घर के पड़ोस मे
बेबसी के आसुओ के साथ
रह रही है एक माँ
और पड़ोसी अपना धरम निभा रहें हें

सांत्वना देने आयी दूसरी माँ ने कहा
मेरी बेटी ने मेरी फ डी अपने खाते
मे जमा कर ली और पूछने पर कहा
" मर जाओगी तो भी तो
मुझे ही मिलगा "
बच्चे तरक्की करते जा रहें हें
पहले माँ बाप को हरिद्वार मे
भूल जाते थे
अब एअरपोर्ट पर भूल जाते है
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

10 comments:

कामोद Kaamod said...

मार्मिक,कटुता और यथार्थ को खीचा है आपने , स्वार्थ और धन लोलुपता की गन्ध है नई पीढ़ी में. पर कल यही उनके साथ भी होगा ये क्यूँ भूल जाते हैं ये.

rashmi said...

बहुत मार्मिक बात कही है दिल को छू लेने वाली....
लालच ने कर्तव्य को ताक पर रख दिया है,ऐसे पुत्रो को कडी से कडी सजा मिलनी चाहिये.

रंजू भाटिया said...

सही है .यह और यही सच्चाई है आज कल की ...

seema gupta said...

truth of the life, very painful and touching.

Regards

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...

बच्चे तरक्की करते जा रहें हें
पहले माँ बाप को हरिद्वार मे
भूल जाते थे
अब एअरपोर्ट पर भूल जाते है

बडी शर्मनाक स्थिति है, मुझे तो आश्चर्य होता है कि कोई बेटा ऐसा भी कर सकता है, विश्वाश नहीं होता? हां यह स्थिति परिवार व समाज का विरोध करके वैयक्तिक स्वतंत्रता व भौतिकता की दौड के कारण है इसीलिये मेरा मानना है कि परंपराओं व प्रचीन व्यवस्थाओं का विरोध करते समय सयंम का परिचय देना चाहिये सामाजिक व्यवस्थायें युगो-युगो के अनुभवों का परिणाम होती हैं, वे स्वतंत्रता का हरण करती हैं तो संरंक्षण भी देती हैं.

राज भाटिय़ा said...

यह एक सच्ची कहानी हे, दिल्ली के राजोरी गार्डन की, धन्यवाद मेने कई बार सोचा इस पर लिखु, लेकिन सही शव्द नही मिलते थे, ओर लिखते लिखते दिखना ही बन्द हो जाता था, ओर हर बार इस कहानी को अधुरा ही छोड दिया,ऎसी ओर भी बहुत सी कहानिया हे, जिन मे कपुत्र ओर कपुत्रिया सब हे , धन्यवाद

बालकिशन said...

नग्न सच्चाई की तस्वीर पेश कर दी आपने.
सच और बिल्कुल सच
"बच्चे तरक्की करते जा रहें हें
पहले माँ बाप को हरिद्वार मे
भूल जाते थे
अब एअरपोर्ट पर भूल जाते है"

Manvinder said...

rachana ji ..
kaafi kadwi lekin sachhi hai je ghar ghar ki kahaani....
manivnder

shelley said...

rachna ji, kaha to aapne sach hi hai. samajak tana bana or riston k reshe to udhar hi rahe hain, aane wale samay me roj hi aise din dekhane ko milenge

Anonymous said...

aankhe bhar aayi, bas aur kya kahu