सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Friday, August 8, 2008

ज्वलनशील नारियाँ

घुघुती बासूती जी का नाम परिचय का मोहताज नहीं हैं । निरंतर नारी आधारित विषयों पर लिख रही हैं और तीखा और आइने की तरह साफ़ । उनकी ये कविता बालकिशन जी की कविता को पढ़ने के बाद उनके कलम से निकली हैं । कविता अतिथि कवि की कलम से के तहत डाली जा रही हैं । आशा हैं लोगो को जरुर पसंद आयेगी ।


ज्वलनशील नारियाँ

नारियों के,
भारतीय नारियों के जलने पर
क्यों अफसोस है
वे तो सदा से ज्वलनशील रही हैं
उसमें न हमारा कोई दोष है,
नहीं तो कोई
उसके जीवित जलने की कल्पना
भी कैसे करता?
तब, जब हम चला रहे थे
अग्नि बाण
जब उत्कर्ष के चरम पर था
हमारा इतिहास
तब भी माद्री बन रही थी
जीवित मशाल।
तब जब हम थे भाग रहे
मुगलों से मुँह छिपा
जब पतन की गर्त में था
हमारा इतिहास
तब भी हम गौरान्वित थे,
क्या हुआ जो हम
न बचा सके अपनी
बेटियों की लाज,
ब्याह रहे थे उन्हें मुगलों से
पाने को कुछ स्वर्ण ग्रास
तब भी पत्नियाँ तो थीं हमारी
सीता, सती व सावित्री
कूद रहीं थीं पद्मिनियाँ
जलने को जौहर की आग में।
फिर जब बन रहे थे
पढ़ अंग्रेजी
जैन्टलमैन बाबू हम
तब भी इन ज्वलनशील नारियों
ने डुबाया था नाम देश का
आना पड़ा था इक
राजा राममोहन रॉय को,
जब भी कोई भद्र
मरणासन्न बूढ़ा खोलता था
करवा कन्यादान
किन्हीं नन्हीं बालाओं के
माता पिता के स्वर्गद्वार
तब उसके मरने पर
बैठ जातीं थीं चिता पर
ये नन्हीं बालाएँ
प्यार में उस वृद्ध के।
आज जब हम
दौड़ में बहुत आगे हैं
हमने आइ टी में रचा है
इक नया इतिहास
तब भी क्या करें
ये ज्वलनशील नारियाँ हमारी
कभी भी
इक माचिस की तीली की
छुअन से जल जाती हैं,
हम नहीं चाहते परन्तु ये
न जाने क्यों भस्म हो
जल मर जाती हैं?
हम भी तो हैं फूँकते
न जाने कितने अरब
सिगरेट और बीड़ियाँ
क्या जली है मूँछ भी
कभी गलती से हमारी आज तक?
फिर न जाने क्या गलत है
डी एन ए में
भारतीय ही नारी के
क्यों ज्वलनशील है वह
हम नहीं हैं जानते।


२०08-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

4 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अब ये आग
सिर्फ हौसलोँ मेँ रहे ..
हमेशा के लिये,
सती प्रथा बँद हो
यही आह्वान है -
-लावण्या

Rachna Singh said...

every line is firey and so very correct and appropriate

बालकिशन said...

विचारोत्तेजक.
झकझोर देनेवाली कविता.
आभार.

शायदा said...

बहुत अलग। बहुत ख़ूब।