कभी सुख कभी दुःख
कभी आंसू कभी हसीं
वह लेते रहे
वह देती रही
सम्बन्ध प्रगाढ़ रहे
साथ पर ना वह रहे
प्रगाढ़ संबंधो मे
ना बाँट सकने कि
पीड़ा को
वह महसूसती रही
वह खामोश देखते रहे
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Thursday, August 21, 2008
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4 comments:
सही है
पीड़ा को सही दर्शया है आप ने ..कभी फुर्सत मिले तो हमे भी पढियेगा ..धन्यवाद ..
relations are difficult to maintain....
sambhandho ko sahi pesh kiya hai aapne
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