अपने विचार जरुर वयक्त करें |
ओ मां,
तुम ख़ुद स्त्री हो
इसलिए जानती हो
इस कटखने समाज में
पल-बढ़ रही स्त्री का दर्द।
चूंकि इस वक्त मैं
तुम्हारे भीतर पल रही हूं
इसलिए जान भी रही हूं
समाज के इस कड़वे स्वाद को
और आज
तुम्हारी उस हताशा को भी
मैंने महसूसा
जब तुम्हें पता चला
कि तुम्हारे भीतर पलता भ्रूण
स्त्रीलिंगी है।
ओ मां,
मैं जानती हूं
कि घर की माली स्थिति
खराब है
और मेरे लिए दहेज की चिंता,
समाज के बिगड़ैलों से
मेरी हिफाजत का तनाव...
से घबराकर तुम
मुझे जन्म देना नहीं चाहती
लेकिन मां,
शायद यह
तुम्हें नहीं पता होगा
कि मैं
तुम्हारे अंतरंग क्षणों की साक्षी
बन चुकी हूं
तुम मेरे उस दर्द को भी
नहीं जान सकती
जब तुमने पिता से कहा
कि तुम्हारे गर्भ में
लड़की है और उसे तुम जन्म...
लेकिन मां,
इन सबके बावजूद
मुझे अपनी कोख से जन्म दो न!
ओ मां,
तुम ख़ुद स्त्री हो
इसलिए जानती हो
इस कटखने समाज में
पल-बढ़ रही स्त्री का दर्द।
चूंकि इस वक्त मैं
तुम्हारे भीतर पल रही हूं
इसलिए जान भी रही हूं
समाज के इस कड़वे स्वाद को
और आज
तुम्हारी उस हताशा को भी
मैंने महसूसा
जब तुम्हें पता चला
कि तुम्हारे भीतर पलता भ्रूण
स्त्रीलिंगी है।
ओ मां,
मैं जानती हूं
कि घर की माली स्थिति
खराब है
और मेरे लिए दहेज की चिंता,
समाज के बिगड़ैलों से
मेरी हिफाजत का तनाव...
से घबराकर तुम
मुझे जन्म देना नहीं चाहती
लेकिन मां,
शायद यह
तुम्हें नहीं पता होगा
कि मैं
तुम्हारे अंतरंग क्षणों की साक्षी
बन चुकी हूं
तुम मेरे उस दर्द को भी
नहीं जान सकती
जब तुमने पिता से कहा
कि तुम्हारे गर्भ में
लड़की है और उसे तुम जन्म...
लेकिन मां,
इन सबके बावजूद
मुझे अपनी कोख से जन्म दो न!
अनुराग अन्वेषी
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
10 comments:
मार्मिक और चेतनताशील रचना।
ःःःःःःःःःःः
चूंकि इस वक्त मैं
तुम्हारे भीतर पल रही हूं
इसलिए जान भी रही हूं
समाज के इस कड़वे स्वाद को
और आज
तुम्हारी उस हताशा को भी
मैंने महसूसा
जब तुम्हें पता चला
कि तुम्हारे भीतर पलता भ्रूण
स्त्रीलिंगी है।
ःःःःःःःःःःःःःःः
यथार्थ। दिल को झकझोर देनेवाली रचना।
sahii likha haen aur man ko chuttaa haen
क्या खूब लिखा है मार्मिक बहुत अच्छी रचना। क्या हर भ्रूण ये ही पूछता होगा अपनी मां से। उत्तम..अति उत्तम।।।।
मार्मिक और गहरी पीड़ा लिए हुए एक रचना.
"लेकिन मां,
इन सबके बावजूद
मुझे अपनी कोख से जन्म दो न!"
समाज को आइना दिखलाती हुई रचना.
बहुत मार्मिक लिखी है आपने यह अनुराग जी ..दिल को छू जाती है इसकी आखरी पंक्तियाँ ..
लेकिन मां,
इन सबके बावजूद
मुझे अपनी कोख से जन्म दो न! ----
बस यही हिम्मत तो चाहिए... माँ की कोख से ही शक्ति लेकर इस दुनिया में आने की तैयारी हर बेटी को करनी होगी...
dil ko chu gai.. yaa aissak ahu sidha dil mai bas gai aapki ye peshkash... bahot hi accha aur saccha likha hai apane
बहुत ही अच्छी कविता। कमाल की कविता।दिल को छूनेवाली।
गर्भ में पल रही बच्ची और मां के दर्द को आपने एक दम सही तरह से उभारा है..... इस कविता को पढ़ने के बाद आंखो से सिर्फ आंसू निकलते है.... और जबान पर गालिया आती है उस समाज के लिए जिसने नारी को ये दिन देखने पर मजबूर किया है... लेकिन हमें यकीन है वक्त बदल रहा है... और नारी की भूमिका और प्रस्थिती भी बदलेगी... अच्छी कविता है
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