हिन्दी ब्लॉगर नीतीश राज जी नारी आधरित विषयों पर अपनी राय कमेन्ट के माध्यम से हम तक पहुचाते रहे हैं । उनकी कलम से हमेशा एक संवेदन शील बात निकलती रही हैं जिस मे नारी के प्रति एक ऐसा नजरिया देखने को मिला हैं जो कम लोग रखते हैं ।
इस कविता को यहाँ पोस्ट करके हम शायद बस इतना कर रहे के की उनके कलम से निकली "अपनी बात को " एक बार फिर दोहरा रहे हैं ।
अक्सर वो अपने से प्रश्न करती,
क्यों, वो कर्कसता को
उलाहनों को, गलतियों को
झिड़की को सहन करती है।
'क्या वो सिर्फ एक देह है'?
क्यों, वो कर्कसता को
उलाहनों को, गलतियों को
झिड़की को सहन करती है।
'क्या वो सिर्फ एक देह है'?
जो कि सबकी निगाहों में
अपने पढ़े जाने का,
शरीर के हर अंग को
साढ़ी और ब्लाउज के रंग को
वक्ष के उभार,
उतार-चढ़ाव को
कूल्हों की बनावट को
होठों की रसमयता को
आंखों की चंचलता को,
क्या कोमल गर्भ-गृह का
सिर्फ श्रृंगार है।
जिसे बीज की तैयारी तक
कसी हुई बेल की तरह बढ़ना है,
फिर उसके, जिसको जानती नहीं
अस्तित्व में अकारण खो जाना है,
कोढ़ पर बैठी मक्खी की तरह।
अपने पढ़े जाने का,
शरीर के हर अंग को
साढ़ी और ब्लाउज के रंग को
वक्ष के उभार,
उतार-चढ़ाव को
कूल्हों की बनावट को
होठों की रसमयता को
आंखों की चंचलता को,
क्या कोमल गर्भ-गृह का
सिर्फ श्रृंगार है।
जिसे बीज की तैयारी तक
कसी हुई बेल की तरह बढ़ना है,
फिर उसके, जिसको जानती नहीं
अस्तित्व में अकारण खो जाना है,
कोढ़ पर बैठी मक्खी की तरह।
जिस के ऊपर
फुसफुसाहट सुनती
वो नयन-नक्स
वो देह की बनावट
बोझ जो उसका अपना
चाहा हुआ नहीं,
किसी और की दुनिया
के दर्जी की गलत काट के कारण,
उसके सीने पर चढ़ाया गया
अक्सर वो खुद से प्रश्न करती।
'क्या वो सिर्फ एक देह है'?
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
5 comments:
नारी ब्लाग पर मेरी कविता को जगह देने के लिए आपका धन्यवाद।
sundar kavita pratut karne ke liye bhai nitish raj ji or apko dhanyawaad.
Bahut teekha sawal karti huee aapki rachna nari blog ko sushobhit hee kar rahee hai.
Bahut khub.
नहीं मैं सिर्फ़ एक देह नहीं हूँ,
मातृत्व की कोख हूँ में,
मानव देह की रचना कार हूँ मैं,
जो मुझे मात्र एक देह कहते हैं,
उनका अपना अस्तित्व मेरी रचना है,
मैं एक इंसान हूँ.
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