नारी ने सीखा नदी से बहना
मौसम की हर मार को सहना
क्योंकि नदी बहने के साथ-साथ
सिखाती है गतिशील रहना
देती है संदेश निरंतरता का
देती है संदेश तत्परता का
नदी देती है शीतलता हृदय को
देती है तरलता मन को
सिखाती है बँधना किनारों से
सिखाती है जुड़ना धरती से !
नदी कराती है समन्वय मौसम से
कराती है मिलन धारा से
देती है संदेश प्रेम का
नदी नहीं सिखाती भँवर में फँसना
वह तो सिखाती है भँवर से उबरना !
नदी नाम है निरंतरता का
नदी नाम है एकरूपता का
नदी ही नाम है समरूपता का
नदी कल्याणी है मानवता की
वह तो संवाहक है नवीनता की
आओ हम भी सीखें नदी से
कर्मपथ पर गतिशील रहना
कंटकाकीर्ण मार्ग पर
निरंतर आगे ही आगे चलना,
नदी की ही तरह निरंतर बहना,
और हर मौसम में
या फिर तूफ़ानी क्षणों में
दृढ़ता के साथ
अडिग खड़े रहकर
ऊँचाइयों के चरम शिखर की
अंतिम सीढ़ी पर पहुँचना !
डॉ.मीना अग्रवाल
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Monday, March 29, 2010
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7 comments:
ऊँचाइयों के चरम शिखर की
अंतिम सीढ़ी पर पहुँचना !
नारी की सुन्दर व्याख्या और संकल्प
सुन्दर
"नदी नहीं सिखाती भँवर में फँसना
वह तो सिखाती है भँवर से उबरना !
नदी नाम है निरंतरता का
नदी नाम है एकरूपता का
नदी ही नाम है समरूपता का
नदी कल्याणी है मानवता की
वह तो संवाहक है नवीनता की
आओ हम भी सीखें नदी से
कर्मपथ पर गतिशील रहना"
क्या बात है जी,
कितनी खूबसूरती से अपनी बात कह दी!
बहुत बढ़िया....!
कुंवर जी,
नारी की सुन्दर व्याख्या ,बहुत बढ़िया....!
मन को छु गई पंक्तिया
ऊँचाइयों के चरम शिखर की
अंतिम सीढ़ी पर पहुँचना !....good...
उत्तम ।
काबिलेतारीफ है प्रस्तुति।.सारी रचनाये आपकी बहुत ही अच्छी है|
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