अनैतिकता बोली नैतिकता से
मंडियों , बाजारों और कोठो
पर मेरे शरीर को बेच कर
कमाई तुम खाते थे
अब मै खुद अपने शरीर को
बेचती हूँ , अपनी चीज़ की
कमाई खुद खाती हूँ
तो रोष तुम दिखाते हो
मनोविज्ञान और नैतिकता
का पाठ मुझे पढाते हो
क्या अपनी कमाई के
साधन घट जाने से
घबराते हों इसीलिये
अनैतिकता को नैतिकता
का आवरण पहनाते हो
ताकि फिर आचरण
अनैतिक कर सको
और नैतिक भी बने रह सको
© 2008-10 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
समाज के ठेकेदारों पर अच्छा प्रहार है....सटीक
अनैतिकता बोली नैतिकता से
मंडियों , बाजारों और कोठो
पर मेरे शरीर को बेच कर
कमाई तुम खाते थे
अब मै खुद अपने शरीर को
बेचती हूँ , अपनी चीज़ की
कमाई खुद खाती हूँ
तो रोष तुम दिखाते हो
बिलकुल सही चोट की है स्माज के उन ठेकेदारों पर जो हर बात मे औरत को ही दोश दे कर अपना पल्ला झाड लेते हैं। धन्यवाद्
अनैतिकता और नैतिकता के बिम्ब में दो पात्रों का यह सम्वाद अच्छा लगा ।
bahut zabardast prahar kiya hai samaj ki mansikta par...........lajawaab prastuti........isse bada jhannatedar thappad aur kya hoga.
Post a Comment