सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, March 6, 2010

हे नर क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम

क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम
कि नारी को हथियार बना कर
अपने आपसी द्वेषो को निपटाते हो
क्यों आज भी इतने निर्बल हो तुम
कि नारी शरीर कि
संरचना को बखाने बिना
साहित्यकार नहीं समझे जाते हो
तुम लिखो तो जागरूक हो तुम
वह लिखे तो बेशर्म औरत कहते हो
तुम सड़को को सार्वजनिक शौचालय
बनाओ तो जरुरत तुम्हारी है
वह फैशन वीक मे काम करे
तो नंगी नाच रही है
तुम्हारी तारीफ हो तो
तुम तारीफ के काबिल हो
उसकी तारीफ हो तो
वह "औरत" की तारीफ है
तुम करो तो बलात्कार भी "काम" है
वह वेश्या बने तो बदनाम है

हे नर
क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम


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