सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, March 13, 2011

सोच रहा हैं अरुणा शानबाग का बिस्तर

अरुणा
मर तो तुम उस दिन ही गयी थी
जिस दिन एक दरिन्दे ने
तुम्हारा बलात्कार किया था
और तुम्हारे गले को बाँधा था
एक जंजीर से
जो लोग अपने कुत्ते के गले मे नहीं
उसके पट्टे मे बांधते हैं

उस जंजीर ने रोक दिया
तुम्हारे जीवन को वही
उसी पल मे
कैद कर दिया तुम्हारी साँसों को
जो आज भी चल रही हैं

उस जंजीर ने बाँध दिया तुमको एक बिस्तर से
और आज भी ३७ साल से वो बिस्तर ,
मै
तुम्हारा हम सफ़र बना
देख रहा हूँ तुम्हारी जीजिविषा
और सोच रहा हूँ

क्यूँ जीवन ख़तम हो जाने के बाद भी तुम जिन्दा हो ??

तुम जिन्दा हो क्युकी तुमको
रचना हैं एक इतिहास
सबसे लम्बे समय तक
जीवित लाश बन कर
रहने वाली बलात्कार पीड़िता का
उस पीडिता का जिसको
अपनी पीड़ा का कोई
एहसास भी नहीं होता

हो सकता हैं
कल तुम्हारा नाम गिनीस बुक मे
भी आजाये

क्यूँ चल रही हैं सांसे आज भी तुम्हारी
शायद इस लिये क्युकी
रचना हैं एक इतिहास तुम्हे

जहां अधिकार मिले
लोगो को अपनी पीड़ा से मुक्ति पाने का
उस पीड़ा से जो वो महसूस भी नहीं करते



आज लोग कहते हैं
बेचारी बदकिस्मत लड़की के लिये कुछ करो
भूल जाते हैं वो कि
लड़की से वृद्धा का सफ़र
तुमने अपने बिस्तर के साथ
तय कर लिया हैं
काट लिया कहना कुछ ज्यादा बेहतर होता

कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं



एक बिस्तर कि भी पीड़ा होती हैं
कब ख़तम होगी मेरी पीड़ा
अरुणा का बिस्तर सोच रहा हैं
और कामना कर रहा हैं
फिर किसी बिस्तर को न
बनना पडे
किसी बलात्कार पीड़िता
का हमसफ़र



लेकिन
बदकिस्मत एक बलात्कार पीड़िता नहीं होती हैं
बदकिस्मत हैं वो समाज जहां बलात्कार होता हैं

बड़ा बदकिस्मत हैं
ये भारत का समाज
जो बार बार संस्कार कि दुहाई देकर
असंस्कारी ही बना रहता हैं




© 2008-10 सर्वाधिकार सुरक्षित!

11 comments:

Kailash Sharma said...

कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं

बहुत मार्मिक रचना..भावनाओं ने निशब्द कर दिया..

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

क्यूँ चल रही हैं सांसे आज भी तुम्हारी
शायद इस लिये क्युकी
रचना हैं एक इतिहास तुम्हे

bilkul sahi paristhiti ko ubhara gaya hai rachna ke jariye.....

manasvinee mukul said...

और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं


बड़ा बदकिस्मत हैं
ये भारत का समाज
जो बार बार संस्कार कि दुहाई देकर
असंस्कारी ही बना रहता.

वाह ! कैलाश जी जैसा ही महसूस कर रही हूँ इस रचना को पढ़कर .लेखनी का सार्थक,सटीक उपयोग .धन्यवाद !
manasvinee mukul naarihun.blogspot.com

aarkay said...

sab kuchh toh keh diya aapne ;ab mere pass toh kehne ko shabd hi nahin bache!
atyuttam abhivyakti .

डॉ .अनुराग said...

तुम हमारे अड़तीस सालो के त्याग ओर मेहनत की ट्रोफी हो अरुणा.....K.E.M nurses behave like this.....हॉस्पिटल स्टाफ की तमाम प्रतिबद्ताओ .समर्पण के बावजूद इस केस के निर्णय को मै जीवन की जीत की तरह नहीं देखता ...ये जरूर है के इस तरह के साह...सिक निर्णय "पेसिव यूथनेसिया " को कानूनी जामा पहनाने ओर इस तरह के केसेस को शायद बेहतर तरीके से डिफाइन करने ओर संभतया एक बड़ी गाईड लाइन खींचते है ...पर इस विशेष केस में मै मानता हूँ स्टाफ सिद्दांतो - नैतिकताओ के भ्रमित सन्दर्भ में जीवन को केवल एक सीमीत दायरे में देख रहा है ...जीवन का अर्थ केवल सांस लेना भर नहीं है ..दूसरे पर निर्भर रहने का अहसास ..आदमी को तोड़ डालता है .....दुर्भाग्य से कोई मशीन अरुणा के मन को नहीं पढ़ सकती!


पिंकी वीरानी ने इस देश को ...देश की मेडिकल फेटरनेटी को ....इस देश की सर्वोच्च अदालत को एक संवेदनशील मुद्दे पर कही न कही एक बहस को आगे जारी रखने के लिए एक कारण दिया है ..एक दर्द को महसूस करना ओर उसे सार्वजानिक करना ...फिर एक लम्बी प्रक्रिया के तहत सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचना ...... अरुणा के लिए न सही पर दूसरे कई मरीजों के लिए सुप्रीमकोर्ट का ये निर्णय एक बेहद साहसिक निर्णय है ...अरुणा के लिए भले ही कानून रूप से क.इ.म का स्टाफ नेक्सट फ्रेंड हो .....पर पिंकी वीरानी जैसे लोग इस समाज की बेहतरी के लिए आवश्यक टूल है ....जो देश के नागरिक होने का कर्तव्य पूरा करते है ..

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

अरुणा
मर तो तुम उस दिन ही गयी थी
जिस दिन एक दरिन्दे ने
तुम्हारा बलात्कार किया था
और तुम्हारे गले को बाँधा था
एक जंजीर से
जो लोग अपने कुत्ते के गले मे नहीं
उसके पट्टे मे बांधते हैं

bahut sahas ki zaroorat hai is tarah ki kavita likhna, apne dil mein is sharmnaak haadse ko jeena aur use shabd dena. behad marmik rachna

वाणी गीत said...

मार्मिक !

रेखा श्रीवास्तव said...

अरुणा शाiनबाग खुद क्या इतिहास रच रही है? हम उसको मजबूर कर चुके हैं क्योंकि उसके गुनाहगार को भी इसी तरह से कोई सजा मिलनी चाहिए कि वह अरुणा शानबाग की तीमारदारी सारे जीवन करता रहे. उसको सिर्फ ७ वर्ष की सजा और फिर वह एक जीवन को मौत जैसी यातना में छोड़ कर कुछ भी करने के लिए स्वतन्त्र है. ऐसे लोगों कि सजा भी तो न्यायालय को निश्चित करनी चाहिए. एक अरुणा शानबाग है कितनी अरुणा शानबाग देखने को मिल रही हैं किसी ने इतनी गहराई से देखा नहीं है. अभी हाल ही में कानपुर के पास ही एक लड़की को असफल होने के बाद इतनी बुरी तरह से जख्मी किया उसको बचाने के लिए डॉक्टर को १४ घंटे ऑपरेशन करना पड़ा. और दूसरी तो अस्पताल के चक्कर लगते लगते ही दम तोड़ गयी

Sharma ,Amit said...

अपनी बात कुछ इस तरह रखने की कोशिश करूंगा !!!

http://myheartsaystomemypoems.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...

लेकिन
बदकिस्मत एक बलात्कार पीड़िता नहीं होती हैं
बदकिस्मत हैं वो समाज जहां बलात्कार होता हैं

बड़ा बदकिस्मत हैं
ये भारत का समाज
जो बार बार संस्कार कि दुहाई देकर
असंस्कारी ही बना रहता हैं

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...

रेखाजी सही लिख रही है. अरूअणा जी को इस हालत में पहुचाने वाले को न केवल दण्डित किया जाना चाहिये वरन उसे अपने अपराध का पश्चाताप उनकी सेवा करके करना चाहिये.