सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, March 12, 2011

कर्म भाग्य बनाता है. बेटों का भी , और बेटियों का भी

एक वक़्त था,
जब मेरे जन्म पर,
तुमने कहा था,
कुल्क्छिनी,
आते ही ,
भाई को खा गयी.
माँ तेरे ये बात ,
मेरे बाल मन
पर घर कर गए.
मेरा बाल मन रहने लगा ,
अपराध बोध,
पलने लगे कुछ विचार,
क्या करूँ ऐसा?
जिससे तेरे मन से ,
मिटा सकूँ मै,
वो विचार,
जिससे कम कर सकूँ,
तुम्हारे,
मन के अवसाद को.
वक़्त गुजरते गए,
ज़ख्म भी भरते गए,
फिर आया ,
एक ऐसा वक़्त,
जब तुमने ही कहा ,
बेटियां कहाँ पीछे हैं ,
बेटों से.
वो तो दोनों कुल का,
मान बढाती हैं,
माँ ,
शायद तुम्हे भी ,
अहसास हो गया,
क़ि जन्म नहीं ,
कर्म भाग्य बनाता है.
बेटों का भी ,
और बेटियों का भी.
" रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

4 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत ही संवेदनशील रचना..आज बेटियाँ किससे कम हैं..बहुत सुन्दर

Shalini kaushik said...

marmik abhivyakti.

निर्मला कपिला said...

बिलकुल सही कहा। बहुत भावमय रचना है। शुभकामनायें।

mridula pradhan said...

atyant bhawbhini......