सदियों सहन करती आई हूँ तुम्हें !
पर अगर तुम यह सोचो
कि यह दहन- प्रक्रिया भी
जारी रहेगी
यूँ ही सदियों तक.
तो मैं चुप नहीं रह पाऊँगी.
तब सहन को भूल,
वहन को त्याग
मैं दहन के विरुद्ध
आवाज़ उठाऊंगी.
हाँ !
मैं दहन के विरुद्ध
आवाज़ उठाऊंगी.
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11 comments:
kyaa char orten bethi hon or voh chup rh skti hen kya avoh aek dusre se jle chide bger rah skti he . yeh to mzaaq he lekin rchna bhtrin he . akhtar khan akela kota rajsthan
बहुत खूब उठानी भी चाहिये तभी बदलाव सम्भव है।
bahut hi sashkt kavita haen
and woman should speak out as often as possible because until and unless woman make noise they will not be heard
SAPEREM ABHIVADAN ...
BAHUT SUNDAR RACHANA
SADAR
LAXMI NARAYAN LAHARE
KOSIR /SARANGARH
जब तक हम खुद आवाज नहीं उठाएंगे तब तक हमारा कुछ भी नहीं हो सकता है पहली आवाज आत्याचार सहने वाले को ही निकालनी होती है अच्छी कविता |
bhavpuran...
Bahut badhiya.
Dahan ke khilaf aapki aawaz ki bulandi par mujhe garv hai..Jo wahan karne aur sahan karne ki kshamta rakhte hain wo dahan ke viruuddh aawaz bulund karne ka haq bhi..
Bahut hi kam shabdon me bahut bari bat bari hi saafgoyi se..
Badhayee
मेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..
एक सामयिक सन्देश . आखिर सहने की भी एक सीमा होती है. दहन तो बिलकुल ही अमानवीय है. सुंदर शब्दों में एक चेतावनी है संवेदना- शून्य पुरुष समाज के लिए.
बधाई !
अच्छा विचार
धन्यवाद !
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