सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Tuesday, November 9, 2010

तुम्हें पता है ???

तुम्हें पता है ???
बादलों की अनधुनी
अधधुली रुई
सिमटी है मेरे आंचल में
महसूस किया तुम्हें
मैंने और
भीगे तुम मेरे प्यार में
लहर लहर लहराये
 तुम्हारे इषारे
पत्तियों में छनती धूप की तरह
 मेरे हदय आंगन में
 समेट लिया
तुम्हारे छुए प्यार को
पवित्र ओस की तरह
 और सज गया एक फूल
 मेरे जीवन में
हूबहू तम्हारी तरह !!!!
तुम्हें पता है ???
 वो फूल
 अब भी
इर्द गिर्द ही है
मेरे !!....किरण राजपुरोहित नितिला

3 comments:

प्रज्ञा पांडेय said...

aapki kavita men prem aur samarpan hai ..pyaar men bheegi aur alasaayi hui kavita hai ..sunadar !!

Sunil Kumar said...

sundar ahsaas achhi lagi rachna badhai

Vishnukant Mishra said...

PRTI CHAN PRTIPAL
IDHA UDHAR
SAB KAHI...
TUMHAR YA MERA
YA KI SABKA------
TUMME,USME AUR HMMEEN
HR SWASH ME BYAPT HAI...
JARA APNE ANTASH NAYNON SE USE '
DEKHO TO....

BAHUT SUNDAR ABHIBYAKTI...AAPKI KAVITA KI ...HAMARA SADHUVAD.