कुछ लोग औरत को जमीन समझते हैं
हमेशा पैरो तले रौंदते हैं
कुछ लोग औरत को जमीन समझते हैं
जब चाहते हैं बेचते खरीदते हैं
कुछ लोग औरत को जमीन समझते हैं
फसल पर फसल उगाते हैं
कुछ लोग औरत को जमीन समझते हैं
माँ कहते हैं पर कुपुत्र ही रहते हैं
© 2008-10 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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9 comments:
बेहद तल्ख सच्चाई।
ाउर कुछ लोग औरत को अच्छी माँ बहन पत्नी भी समझते है। पाँचों ऊगलियाँ बराबर नही होती। शुभकामनायें।
बेहद कटु सत्य, निर्मला जी रचना ने कुछ कहा है इसमें सभी नहीं होते . अगर सभी ऐसे होते तो जो आज महिलाएं कीतिमान स्थापित कर रही हैं संभव ही न होता. पर ये कुछ जो कर रहे हैं वे मानव जाती के प्रति अन्याय का प्रतीक हैं.
stri-jeevan ki sachchay hi yahi hai.kavita yatharth ke ekdam sameep hai.
...
कड़वी सच्चाई..
समाज के ऐसे ही एक सच पर हमने भी एक किस्सा (क्या होगा -1, 2) अपने ब्लॉग पर लगाया है।
पाठकों की टिप्पणियां उत्साह बढाने में तथा सोच की दिशा-विदिशा को तय कर पाने में सहायक होगी।
punarjanmm.blogspot.com
न इतने उदास हो ,
कुछ लोग क्या समझते है ,
वो हर जगह सच नहीं होता ,
कुछ मूर्खो को माफ करो ,
फिर जिंदगी में कोई उदाश नहीं होता
@ निर्मला कपिला ,रेखा श्रीवास्तव - मै आप की बातों से पूर्ण रूप से सहमत हू ,
एक दिशा में लिखी गयी कविता , तारीफ करता हूँ की शब्दों में "कुछ" का इस्तमाल हुआ और लेखक ने पुरे पुरुष को दोषी नहीं पाया
These are some of my poems.. i hope ppl will like...
Lovely Poems
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