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नारी ने सीखा
फूलों से खिलना,
मुस्कुराना और महकना,
तितलियों से सीखा
ऊँचाइयों तक उड़ना
और रंग बिखेरना,
भौंरों से सीखा
गीत गुनगुनाना,
चिड़ियों से सीखा
तिनका-तिनका जोड़कर
घौंसला बनाना,
और जीवन के
हर मोड़ पर चहचहाना,
नदी से सीखा
हरदम बहना
और गतिशील रहना,
सूरज से सीखा
रोशनी लुटाना,
चाँद से सीखा
शीतलता देना और
चाँदनी बिखेरना,
पत्तों से सीखा
हिल-मिल रहना
और इक-दूजे से
सुख-दुख की कथा कहना,
धरती से सीखी धीरता,
आकाश से सीखा विस्तार,
पर्वत से सीखा
संघर्ष के कठिन क्षणों में
फौलाद बन अडिग रहना,
दीपक की बाती से सीखा
निरंतर जलना,
स्थिर रहना,
जगमगाना
और जलकर भी
तम को दूर भगाना,
नारी ने सागर से पाई
मनभर गहराई,
पर्वत से पाई
अछोर ऊँचाई,
पेड़ से सीखा
हरा-भरा रहना
और थके मन-राही को
छाया देना,
नारी ने पवन से सीखा
प्राण लुटाना,
और जल से ली तरलता,
नारी काँटों से भी
करती है प्यार,
उनका भी करती है सत्कार,
क्योंकि फूल के
मुरझाने पर भी
कभी मुरझाते नहीं हैं काँटे!
काँटे करते हैं सदैव
रक्षा फूलों की
और महका देते हैं
पूरे वातावरण को
अपनी महक से !
फूल से इसीलिए तो
जोड़ दिए हैं काँटे भी
विधाता ने !
डॉ. मीना अग्रवाल
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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2 comments:
अच्छी उपमाएँ हैं.
काँटे करते हैं सदैव
रक्षा फूलों की
और महका देते हैं
पूरे वातावरण को
अपनी महक से !
- विजय तिवारी 'किसलय'
हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर
नारी ईश्वर की वह रचना है, जिससे ये सृष्टि चलती है और वह विषम से विषम परिस्थिति में भी अपने संयम और धैर्य के साथ जूझती हुई इसमें वर्णित हर रूप में साकार होती है.
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