बहुत बार पूछा जाता हैं नारी से
क्यूँ वो आज़ादी चाहती हैं
और किस से
आज़ादी के पावन पर्व पर
कहती हैं नारी
सबसे पहले मै
आज़ादी चाहती हूँ इस प्रश्न से
कि क्यूँ और किस से मुझे
आज़ादी चाहिये
आज़ादी चाहती हूँ इस मानसिकता से
जहां मेरी सोच को ही दायरों मे बंधा जाता हैं
जहां मेरे विस्तार पर मेरे चरित्र को आंका जाता हैं
जहां मुझ से तर्क मे ना जीतने पर
मेरे शरीर पर निशाना साधा जाता हैं
जहां मेरे हर काम को
नारीवादी का कह कर नकारा जाता हैं
इस आज़ादी कि मै हकदार हूँ
और ले कर रहूंगी
जितना चाहो , जो चाहो
तुम कर के देख लो
आज़ाद इस दुनिया मे आयी हूँ
आज़ाद ही रहूँगी
© 2008-10 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Sunday, August 15, 2010
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9 comments:
बहुत सुन्दर ... मगर मेरे को लगता है इस बार थोड़ी छोटी रह गई !!!
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल
बिल्कुल! आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
घुघूती बासूती
अच्छी प्रस्तुति ..
बिल्कुल ठीक ! आज़ादी की बात पर औरतों से पूछे जाने वाले प्रश्न ही बेमानी हैं. घुघूती जी की बात से सहमत आज़ादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है.
बहुत ख़ूब... आज़ादी सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है...
Baat to aapki sahi hai
रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
बहुत ख़ूब !
jabardast.bahut hi jabardast.
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