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अंदर-अंदर टूटन
अंतर में घुटन
और मुख पर मुस्कान,
खुशियाँ लुटाना
आदत-सी बन गई है!
इसी आशा में,
इसी प्रत्याशा में
कि शायद
वो एक दिन आएगा
ज़रूर आएगा,
जो नारी को
उसके अस्तित्व की
पहचान कराएगा,
आदर दिलाएगा
उसके अंतर की पीड़ा से
समाज तिलमिलाएगा!
और समाज के
सहृदय जन
एक दिन महसूस करेंगे
उसकी छटपटाहट को,
देंगे नारी को
उसकी पहचान,
देंगे उसे सम्मान
और जीने का अधिकार,
क्योंकि नारी
टूटकर भी
सदैव रही है संपूर्ण!
पक्का भरोसा है उसे
कि एक दिन आएगा,
ज़रूर आएगा
जब खोया हुआ अतीत
होगा उजागर!
इंतज़ार है उसे
उस दिन का
जो उसे न्याय दिलाएगा
देखते हैं,
कब आएगा
वह भाग्यशाली एक दिन!
डॉ.मीना अग्रवाल
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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5 comments:
बहुत उम्दा रचना!
wonderful expressions
उम्मीदों से सजी एक खूबसूरत रचना।
क्योंकि नारी
टूटकर भी
सदैव रही है संपूर्ण!
very impressive...
http://kavyaneel.blogspot.com/
ऐसा दिन तभी आएगा जब नारी स्वयम कृत संकल्प होकर इस काम का बीड़ा खुद अपने हाथों में उठा लेगी ! सत्ता उपहार में नहीं मिला करती उसे जीतना होता है अपने बलबूते पर ! नारी जागृति हेतु एक सुन्दर रचना ! बधाई !
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