न जाने कितनी बार
टूटी है वो टुकड़ों-टुकड़ों में
हर किसी को देखती
याचना की निगाहों से
एक बार तो हाँ कहकर देखो
कोई कोर कसर नहीं रखूँगी
तुम्हारी जिन्दगी संवारने में
पर सब बेकार
कोई उसके रंग को निहारता
तो कोई लम्बाई मापता
कोई उसे चलकर दिखाने को कहता
कोई साड़ी और सूट पहनकर बुलाता
पर कोई नहीं देखता
उसकी आँखों में
जहाँ प्यार है, अनुराग है
लज्जा है, विश्वास है !!
आकांक्षाटूटी है वो टुकड़ों-टुकड़ों में
हर किसी को देखती
याचना की निगाहों से
एक बार तो हाँ कहकर देखो
कोई कोर कसर नहीं रखूँगी
तुम्हारी जिन्दगी संवारने में
पर सब बेकार
कोई उसके रंग को निहारता
तो कोई लम्बाई मापता
कोई उसे चलकर दिखाने को कहता
कोई साड़ी और सूट पहनकर बुलाता
पर कोई नहीं देखता
उसकी आँखों में
जहाँ प्यार है, अनुराग है
लज्जा है, विश्वास है !!
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
13 comments:
This poem was posted on naari blog which is for prose so i as an moderator reposted it here
these comments were there on the naari blog which i am posting here
Blogger KK Yadav said...
पर कोई नहीं देखता
उसकी आँखों में
जहाँ प्यार है, अनुराग है
लज्जा है, विश्वास है !!
........बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति. वाकई यह कविता दिल को छूती है.
February 7, 2009 5:26 PM
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Blogger Ratnesh said...
आकांक्षा जी! आपने बहुत सही दास्ताँ पेश की है. दुर्भाग्य से हम अपनी प्रगतिशीलता का कितना भी दंभ ठोंक लें, पर जब विवाह-शादी की बात आती है तो प्रगतिशील समाज भी रुढिवादी हो जाता है.
February 7, 2009 5:32 PM
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Blogger Dr. Brajesh Swaroop said...
मान गए आकांक्षा जी की लेखनी की धार को. 'शब्द-शिखर' ब्लॉग के बाद अब 'नारी' ब्लॉग पर भी आपकी रचनाओं से रु-ब-रु होने का मौका मिलेगा. आपकी यह कविता एक हकीकत को अपनी धार से प्रस्तुत करती है..
February 7, 2009 5:43 PM
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Blogger Bhanwar Singh said...
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "....उस कड़ी में आकांक्षा जी की यह कविता एक दर्द को बयां करती है. पर किसी लड़की को "चीज" बनाने में पुरुष के साथ-साथ नारी भी उतनी ही भागीदार है. पुरुषों से ज्यादा नारियां ही रंग-ढंग देखने में कभी-कभी ज्यादा विश्वास करती है.
February 7, 2009 5:50 PM
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Blogger संगीता पुरी said...
गजब ....सटीक लिखा है....बिल्कुल यथार्थ का प्रस्तुतीकरण।
February 7, 2009 6:01 PM
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पर कोई नहीं देखता
उसकी आँखों में
जहाँ प्यार है, अनुराग है
लज्जा है, विश्वास है !!
bahut hii sahii kehaa haen aapne
laekhni ki dhaar ko banaaye rakhae aur kavita is blogpar post karey
man ke bhav bahut hi sundar tarike se bayan huye hai ek ladki ke,bahut badhai
bahut hi satik kavita, dil ko chu gayi. aise hi likhte rahein.
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "....उस कड़ी में आकांक्षा जी की यह कविता एक दर्द को बयां करती है. पर किसी लड़की को "चीज" बनाने में पुरुष के साथ-साथ नारी भी उतनी ही भागीदार है. पुरुषों से ज्यादा नारियां ही रंग-ढंग देखने में कभी-कभी ज्यादा विश्वास करती है.
अरे यहाँ भी पोस्ट मिसेंट होने लगी...फ़िलहाल जैसे डाकिया बाबू डाक लाता है, आकांक्षा जी बार-बार आपने पिटारे में से सुन्दर कविताओं को बाहर लाती है. एक लड़की कविता लड़कियों के उस दर्द को बयां करती है , जिसे सिर्फ वह ही महसूस कर सकती है.
मान गए आकांक्षा जी की लेखनी की धार को. 'शब्द-शिखर' ब्लॉग के बाद अब 'नारी' ब्लॉग पर भी आपकी रचनाओं से रु-ब-रु होने का मौका मिलेगा. आपकी यह कविता एक हकीकत को अपनी धार से प्रस्तुत करती है..
आकांक्षा जी! समाज में मुंह-दिखाई के नाम पर जो धंधा चल रहा है, उस दारुण परिस्थिति का आपने जीवंत वर्णन किया है. आदमी कितना भी बड़ा हो जाय, पर हर कोई इससे किसी न किसी रूप में दो-चार होता है....बस सब चलता है के नाम पर मुंह-दिखाई का यह गोरख-धंधा चलता है....इस बेबस यथार्थ को आपने जिन शब्दों में ढाला है, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम होगी.
kya karenge bazarbadi vyavastha hamen rishte todne par mazbbor kar rahi hai. kisi kshetra mein samvedana nahin bachi hai. aap kee lineen achchi hain. sarthak ho jayengi agar nai peedi ke chand log hi amal kar lein.
अति सुन्दर कविता. एक सच को आपने जिन शब्दों में उकेरा है, प्रशंशनीय है.
प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यिक पत्रिका "साहित्य अमृत" में आपकी यह कविता 'एक लड़की' पहले ही पढ़ चुका हूँ. यहाँ फिर से पढना सुखद लगा...मुबारकवाद !!
बेहद संजीदगी लिए कविता . हर लड़की को इससे गुजरना पड़ता है या कहें की समाज गुजरने पर मजबूर करता है. इस समाज में पुरुष और नारी सामान रूप से शामिल हैं. जब तक समाज किसी लड़की को एक "उत्पाद" या "गुडिया" की नजर से देखने का ढकोसला बंद नहीं करेगा, तब तक यह कुरीति कायम है.कुछेक लड़कियों ने इसके विरुद्ध हिम्मत भी उठाई है, पर दुर्भाग्यवश उनमें से बहुत कम ही आपने परिवार और परिवेश से सपोर्ट पा सकीं.युवा पीढी को यह संकल्प उठाना होगा की सूरत की बजाय सीरत को महत्व दें.
kya baat kahi hai........zindagi ki haqeeqat hai ye
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