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कभी -कभी अंतस से एक प्रश्न आता है ,
मेरे आस पास फ़ैल जाता है ।
ऊँचे पहाडों से टकराकर प्रतिध्वनित होता है ,
और मुझे लगता है
कि
सबकी आँखों में वही प्रश्न है ,
सबकी बातों में वही चिढ ।
कौन हो तुम ?
क्या चाहती हो ?
क्या कहूँ ?क्या उत्तर दूँ ?
दूँ भी...... तो क्या समझ लेंगे सब लोग मेरे उत्तर को?
सोचती हूँ कह दूँ -
एक नदी हूँ मैं
और चाहती हूँ कि मुझे अपने तरीके से बहने दिया जाए ।
अपने कगारों में बंधी ,
किनारे के पेडों से बतियाती ,बह लुंगी मैं ।
पर लोग हैं कि ...
बहने नही देते ।
कभी सोचती हूँ कह दूँ -
एक आग हूँ मैं ,
और चाहती हूँ
कि ,
मुझे अपने तरीके से जलने दिया जाए ।
किसी गृहणी के चूल्हे की लकडियों से बतियाती ,
भोजन बनाती जल लुंगी मैं ।
पर लोग हैं के ----
जलने नही देते ।
अब दिशाएं मौन हैं ,
न प्रश्न हैं ,न उत्तर हैं ।
जानती हूँ
मुझे अपने तरीके से जलने या बहने नही दिया जाएगा ।
फ़िर भी कहती हूँ ,
एक मनुष्य हूँ मैं ,
एक नारी हूँ मैं ,
और चाहती हूँ -----
कि.....
मुझे अपने तरीके से जीने दिया जाए .
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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7 comments:
aakhari lines mein bahut achha likha aapne,ek nari hun,aur mujhe apne tarike se jine diya jaye,puri ke puri kavita hi bahut sashakt bhav liye huye hai.aur satya kehti,bahut achhi lagi,badhai.
बहुत ख़ूब. अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
एक मनुष्य हूँ मैं ,
एक नारी हूँ मैं ,
और चाहती हूँ -----
कि.....
मुझे अपने तरीके से जीने दिया जाए .
रचना में बहुत अच्छी बात कही गई है.
-विजय
very nice poem
बहुआयामी चिन्तन की कविता। धन्यवाद
आप सबकी बधाई ,प्रशंसा और टिप्पणियाँ मेरे लिए बहुमूल्य हैं आप सबका बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद
bilkul sahi kaha aapne .....nari ke manobhavon ko sahi pahchane hai aapne.........kash aisa hi ho sake ...........nari ko uske dhang se jeene diya ja jaaye..........waqt ke sath nadi ki tarah bahne diya jaaye tab dekho uski udan ko aur uski shakti ko.
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