सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, February 19, 2009

अश्लील है तुम्हारा पौरुष

ऋषभ देव शर्मा जी की ये कविता हम अतिथि कवि की कलम से के तहत पोस्ट कर रहे हैं ।
हिन्दी ब्लॉगर ऋषभ देव शर्मा जी नारी आधरित विषयों पर अपनी राय ब्लॉग के माध्यम से हम तक पहुचाते रहे हैं । उनकी कलम से हमेशा एक संवेदन शील बात निकलती रही हैं जिस मे नारी के प्रति एक ऐसा नजरिया देखने को मिला हैं जो कम लोग रखते हैं ।
इस कविता को यहाँ पोस्ट करके हम शायद बस इतना कर रहे के की उनके कलम से निकली "अपनी बात को " एक बार फिर दोहरा रहे हैं ।

अश्लील है तुम्हारा पौरुष

पहले वे
लंबे चोगों पर सफ़ेद गोल टोपी
पहनकर आए थे
और
मेरे चेहरे पर तेजाब फेंककर
मुझे बुरके में बाँधकर चले गए थे.



आज वे फिर आए हैं
संस्कृति के रखवाले बनकर
एक हाथ में लोहे की सलाखें
और दूसरे हाथ में हंटर लेकर.



उन्हें शिकायत है मुझसे !



औरत होकर मैं
प्यार कैसे कर सकती हूँ ,
सपने कैसे देख सकती हूँ ,
किसी को फूल कैसे दे सकती हूँ !



मैंने किसी को फूल दिया
- उन्होंने मेरी फूल सी देह दाग दी.
मैंने उड़ने के सपने देखे
- उन्होंने मेरे सुनहरे पर तराश दिए.
मैंने प्यार करने का दुस्साहस किया
- उन्होंने मुझे वेश्या बना दिया.



वे यह सब करते रहे
और मैं डरती रही, सहती रही,
- अकेली हूँ न ?



कोई तो आए मेरे साथ ,
मैं इन हत्यारों को -
तालिबों और मुजाहिदों को -
शिव और राम के सैनिकों को -
मुहब्बत के गुलाब देना चाहती हूँ.
बताना चाहती हूँ इन्हें --



''न मैं अश्लील हूँ , न मेरी देह.
मेरी नग्नता भी अश्लील नहीं
-वही तो तुम्हें जनमती है!
अश्लील है तुम्हारा पौरुष
-औरत को सह नहीं पाता.
अश्लील है तुम्हारी संस्कृति
- पालती है तुम-सी विकृतियों को !



''अश्लील हैं वे सब रीतियाँ
जो मनुष्य और मनुष्य के बीच भेद करती हैं.
अश्लील हैं वे सब किताबें
जो औरत को गुलाम बनाती हैं ,
-और मर्द को मालिक / नियंता .
अश्लील है तुम्हारी यह दुनिया
-इसमें प्यार वर्जित है
और सपने निषिद्ध !



''धर्म अश्लील हैं
-घृणा सिखाते हैं !
पवित्रता अश्लील है
-हिंसा सिखाती है !''



वे फिर-फिर आते रहेंगे
-पोशाकें बदलकर
-हथियार बदलकर ;
करते रहेंगे मुझपर ज्यादती.



पहले मुझे निर्वस्त्र करेंगे
और फिर
वस्त्रदान का पुण्य लूटेंगे.



वे युगों से यही करते आए हैं
- फिर-फिर यही करेंगे
जब भी मुझे अकेली पाएँगे !



नहीं ; मैं अकेली कहाँ हूँ ....
मेरे साथ आ गई हैं दुनिया की तमाम औरतें ....
--काश ! यह सपना कभी न टूटे !


© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

11 comments:

रेखा श्रीवास्तव said...

नारी को सिर्फ नारी ही परिभाषित कर सकती हो ऐसा नहीं है, संवेदनाएं वही हैं, हृदय वही है और सोच भी वही . कोई पुरुष या नारी यथार्थ कि परिभाषा तो नहीं बदल सकता है.
मन को आंदोलित करने वाली ये पंक्तियाँ वो भोगा हुआ यथार्थ है, जिसे नारी ने सदियों से और आज तक भोग रही है. काश ! ये भावनाएं सबके पास हों. सिर्फ पुरुष ही नहीं, नारी भी नारी को सदैव सहारा नहीं देती है बल्कि उसको वेश्या बनाने, आत्महत्या करने और गुलामी करने पर मजबूर करती रही है और करती रहेगी.
मानव हो कर विचार करें तो कोई भी असहाय रहे ही नहीं. जहाँ वर्चस्व का पर आघात होते देखता है , शोषक भी बन जाता है.
इन मर्मस्पर्शी पंक्तियों के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

Anil Kumar said...

किसी की फूल सी देह को सलाखों से दागने में कोई पौरुष नहीं है. यह कायरता है. कायरता अश्लील है, पौरूष पुरुषार्थ है.

vandana gupta said...

itna sach kaha hai jitna sach ---sach hota hai.
koi nahi janna chahta nari ke hraday ko , sab use bhogna jante hain,apne adhikar ki vastu jante hain , apne man ka chalchitra banate hain.
nari ka bhi kuch to swabhiman hota hai,kuch uski bhi ichchayein , aakankshyein hoti hain magar jab tak use dafan na karein tab tak insan ka porush kahan thor pata hai.
aaj bhi har insaan nari ko abla hi dekhna chahta hai galti se koi sir utha le to uska wo hi hashra kiya jata hai jo aapne kaha hai..........aakhir kab tak aisa hota rahega?
aapne to nari ke har paridrishya ko jivant kar diya.

Prerana said...

behad achha. likha gaya hai...dhanyawad ise hum tak pahuchane k lie ... by the way ....thanks for stopping by my blog and droping ur valuble comment.

Anonymous said...

ek sashakt aur achhi rachana,badhai

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अच्छी रचना है.

अनिल कान्त said...

bahut achchha likha hai ...kaabile taareef

mukti said...

नारी का यह सपना नहीं बल्कि हकीक़त होनी चाहिए कि वे अकेली नहीं ,उनके साथ हैं वो सभी नारियाँ जो हर समय ,हर जगह ये सब झेलती हैं .औरतों को अपनी नियति बदलने कि शुरुआत ख़ुद करनी होगी ,जिसमें ऋषभदेव जी जैसे पुरूष हमारे साथी बनेंगे .

कडुवासच said...

... बहुत ही प्रसंशनीय व प्रभावशाली रचना है।

Sanjay Grover said...

अश्लील है तुम्हारा पौरुष
-औरत को सह नहीं पाता.
अश्लील है तुम्हारी संस्कृति
- पालती है तुम-सी विकृतियों को !



''अश्लील हैं वे सब रीतियाँ
जो मनुष्य और मनुष्य के बीच भेद करती हैं.
अश्लील हैं वे सब किताबें
जो औरत को गुलाम बनाती हैं ,
-और मर्द को मालिक / नियंता .
अश्लील है तुम्हारी यह दुनिया
-इसमें प्यार वर्जित है
और सपने निषिद्ध !



''धर्म अश्लील हैं
-घृणा सिखाते हैं !
पवित्रता अश्लील है
-हिंसा सिखाती है !''
SHAABAASH.
Aao is seekhe huye ko unseekha kareN.

sandeep gaur said...

shaandaar kavita!!!!!!