सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, December 15, 2008

आज का कटु सत्य!

जीवन भर
वह जीती रही
बड़ों से छोटों तक
सबके लिए ।
ढोती रही
घर के दायित्व
नूतन सृष्टि की
उन्हें जीवन औ' नाम दिया
वे एक प्रतीक बन
आज भी
अपने जीवन में खुश हैं।
वह तो जीवन भर
उनके चेहरे की खुशी में ही
जीती रही और खुश रही।
आज अशक्त,वृद्ध औ' असहाय,
कोई भी नहीं,
सबके अपने जीवन हैं
दायित्व हैं,
सब अपने वक्त् के पहले
विदा कह कर चले गए।
एक नारी की
कल्पना
यहाँ भी मुखरित हुई
एकाकीपन के भयावह आतंक से
ख़ुद को बचने के लिए
जड़ लिए शीशे चारों तरफ
कम से कम एकाकी तो नहीं,
अक्ष ही दिखते रहेंगे
अपने अलावा।
अन्तिम क्षणों की वेदना
किस तरह जी और किस तरह पी
वह जो सृष्टि कर्ता थी
अपने जीवन में
अकेले ख़ुद ही
एक कहानी बना गई.
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

3 comments:

Anonymous said...

ek satya ko ubhartee kavita

Anita kumar said...

हर वर्द्ध का सच चाहे वो नर हो या नारी।

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

आपने सही कहा॥। यही कटु सत्य आज का भी ओर कल का भी॥

" बोलो, केतली-देवी की-जय हो।"
यह सभी घटना का पुरा विवरण पढने के लिये लोग ऑन करे http://ombhiksu-ctup.blogspot.com/
HEY PRABHU YEH TERA PATH