तस्वीर अपनी खिचाती हैं
सबको नग्नता उसमे नहीं
उसके काम मे नज़र आती हैं
पर उसकी नग्न तस्वीर
ना जाने क्यों ? ऊँचे दामो मे
मन बहलाव के लिये खरीदी जाती हैं ।
अभी ना जाने और कब तक
मन के कसैले पन को
भूलने के लिये लोग तेरी तस्वीर
अपने घरो , कमरों , दीवारों पर टांगेगे
किसी भी उम्र के हो वो
पर औरत की तस्वीर
यानी एक मन बहलाव का साधन
कभी किताबो मे , कभी पोस्टर मे
और कभी ब्लॉग पर घूमती हैं
तस्वीरे औरतो की
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2 comments:
ye bhi ek dardnaak satya hai.
बहुत अच्छी कविता।
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