सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, September 25, 2008

नागफनी

अपने से कमज़ोर
मत समझो दूसरे को
वह कोई गाजर - मूली नहीं
खोद कर निकल लोगे जड़ समेत
फिर
काट कर टुकडे टुकडे कर डालोगे उसके
वह भी है नागफनी
जिस की जड़े मिटटी मे धसीं हैं
उखाड़ने से पहले
काटने से पहले
सोच लो एक बार
तुम्हारा भी हाथ
लहू लुहान हो सकता हैं
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4 comments:

दीपक कुमार भानरे said...

बहुत ही सुदर अभिव्यक्ति . धन्यवाद .

11111 said...

एक बेहतरीन और शानदार कविता। शुभकामनाएं।

मीनाक्षी said...

बहुत प्रभावशाली सन्देश देती कविता...

Unknown said...

अच्छी कविता है. एक बहुत ही व्यवहारिक संदेश देती है. कभी किसी को अपने से कमजोर समझ कर उस पर अन्याय नहीं करना चाहिए.