पिता कहते हैं
"पुत्री मेरी आगे बढे , तरक्की करे
लालन पालन का वादा मेरा
मै तो बस इतना ही चाहता हूँ "
भाई कहते हैं
"बहिन मेरी आगे बढे , पढे , लिखे ।
नौकरी करे , सुरक्षा का वादा मेरा
मै बस इतना ही चाहता हूँ "
पति कहते हैं
"पत्नी मेरी , नौकरी करे , आगे बढे
सामाजिक व्यवस्था मे बराबरी का वादा मेरा
मै बस इतना ही चाहता हूँ "
फिर
नारी प्रतिस्पर्धा करती हैं पुरूष से
ये किसने कहा और क्यों ??
क्या ढकोसला हैं वह सब जो
एक पिता , भाई और पति
समय समय पर कहते हैं ।
कौन हैं वह जो नारी को
प्रतिस्पर्धी समझते हैं ?
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5 comments:
नारी की प्रतिस्पर्धा पुरुष से नहीं,ये तो हक़ की लड़ाई है, पिता-भाई-पति अपने वादों को निभा लें तो ये लड़ाई भी खत्म, फिर नारी दो कदम पीछे नहीं, साथ-साथ चलेगी-बढ़ेगी
प्रगति करने का हक़ सब को है. प्रतिस्पर्धा की बात करना ही बेमानी है. कोई तरक्की करे तो किसी और को उस से तकलीफ क्यों होनी चाहिए? जब सब तरक्की करेंगे तभी तो समाज और देश तरक्की करेगा.
प्रतिस्पर्धा बुरी बात तो नहीं, पुरुष हर रूप में नारी का साथ देता है, नारी भी हर कदम पर पुरुष का साथ देती हैं. कुछ अपराधी पुरुषों के कारण कुछ सिरफ़िरी नारियां पुरुषों, परिवार व सामाजिक व्यवस्थाओं को ही विरोधी समझने लगती हैं. नर-नारी प्रतिस्पर्धी नहीं, एक दूसरे के प्राकृतिक सहयोगी व पूरक हैं, इन्हें कोई अलग नहीं कर सकता.
राष्ट्रप्रेमी जी भाषा पर अधिकार न ख़तम किया करे . "सिरफ़िरी नारियां " कह कर आप केवल और केवल अपना अपमान कर रहे क्युकी आप दिखा रहे हैं उस आक्रोश को जो आप के अंदर हैं . इस कविता मे कही भी कोई एसा शब्द नहीं हैं जो शालीनता की परिधि से बाहर हो . कुछ प्रश्न हैं पर अगर उत्तर मे इस भाषा का उपयोग होगा तो कविता के प्रशन ख़ुद उत्तर बन जायेगे . " महात्मा गाँधी जी ने कहा हैं नारी और पुरूष एक दुसरे के पूरक नहीं हैं अपितु दोनों समान हैं और इन को काम प्रकृति के हिसाब से नहीं इनकी क्षमता के हिसाब से हो .
रचना जी पूरी पंक्ति को साथ ही पढियेगा, अलग-अलग सन्दर्भ से अर्थ ही बदल जाता है, जिसको पुरुषों को अपराधी कहने पर आपत्ति नहीं तो दूसरे शब्दों पर ही क्यों?
"अपराधी पुरुषों के कारण कुछ सिरफ़िरी नारियां"
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