चाँद सूरज जिस तरह
एक झील में उतरतें हैं
मैंने तुम्हे देखा नही
कुछ नक्श से उभरते हैं
वायदों को तोड़ती है
एक बार ही ये जिन्दगी
कुछ लोग हें मेरी तरह
फ़िर एतबार करते हें
----नीलिमा गर्ग
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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7 comments:
beautiful ........... .nice
bahut sunder likha hai
खूबसूरत...बहुत उम्दा...वाह!
Sundar kavita
is ko yaahan daekar padney kaa sukh daene kae liyae thanks
बहुत सुंदर रचना है. वधाई.
achha likha hai.....
kabhi samay nikalkar hamare blog pe bhi padhare...
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