सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Tuesday, September 2, 2008

A poem by Amrita Pretam

चाँद सूरज जिस तरह
एक झील में उतरतें हैं
मैंने तुम्हे देखा नही
कुछ नक्श से उभरते हैं
वायदों को तोड़ती है
एक बार ही ये जिन्दगी
कुछ लोग हें मेरी तरह
फ़िर एतबार करते हें
----नीलिमा गर्ग

7 comments:

Rakesh Kaushik said...

beautiful ........... .nice

manvinder bhimber said...

bahut sunder likha hai

Nitish Raj said...

खूबसूरत...बहुत उम्दा...वाह!

RADHIKA said...

Sundar kavita

Rachna Singh said...

is ko yaahan daekar padney kaa sukh daene kae liyae thanks

Unknown said...

बहुत सुंदर रचना है. वधाई.

Anonymous said...

achha likha hai.....
kabhi samay nikalkar hamare blog pe bhi padhare...