तब नहीं जानती थी मैं
कि क्यों रोकती है मुझे अम्मी
दुहाई दे दे कर जमाने की.
क्यों नहीं खेलने देती मुझे
हमसायों के संग
देर तक अकेले में.
अब ,जब मैं
स्वयं पहुंच गयी हूँ
अम्मी की उम्र तक.
और जान गयी हूँ
उन दुहाइओं का सच.
और समझाना चाहती हूँ
अपनी मासूम कली को
तो वो भी
नहीं समझ पा रही मेरी बात.
वो भी पूछती है मुझसे
वही सवाल
जो तब
मैं अपनी अम्मी से पूछती थी.
और अब
मैं भी जूझती हूँ
उसी कशमकश से,
जिससे कभी
मेरी अम्मी जूझती थी.
© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!
9 comments:
बेहतरीन रचना!
bahut accha likha aapne....
बहुत खूब...
क्या सीरत थी, क्या सूरत थी..
पाँव छुए और बात बनी, अम्मा एक मुहूर्त थी...
happy mothers day...
बहुत ही बढ़िया रचना बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर
कितनी सुंदर कविता ....सभी प्यारी प्यारी ममाओं को हैप्पी मदर्स डे
मातृ-दिवस पर मेरी मंगल कामना स्वीकारिए।
भगवान राम ने शिव-धनुष तोंड़ा, सचिन ने क्रिकेट में रिकार्ड तोड़ा, अन्ना हजारे ने अनशन तोड़ा, प्रदर्शन-कारियों रेलवे-ट्रैक तोड़ा, विकास-प्राधिकरण ने झुग्गी झोपड़ियों को तोड़ा। तोड़ा-तोड़ी की परंपरा हमारे देश में पुरानी है। आपने कुछ तोड़ा नहीं अपितु माँ की ममता से समाज को जोड़ा है। इस करुणा और ममता को बनाए रखिए। यह जीवन की पतवार है। आपकी रचना का यही सार है।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
khoob likha hai sunder rachna bahut bahut badhai
rachana
ये चिंताएं सदियों से एक माँ से बेटी को विरासत में मिलती रही हैं और पता नहीं कब तक मिलती रहेंगी ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !
Bahut-bahut dhanyawad!
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