एक नारी के मन की -
व्यथा हो तुम
धूलिसात अभिमान का
प्रतीक हो तुम
रिश्तों में छली गयी
नारी हो तुम
पर निष्ठुर भाग्य को धता
देती हो तुम
अंतस की पीड़ा का
आख्यान हो तुम
द्युतक्रीडा के परिणाम का
व्याख्यान हो तुम
भक्ति की पराकाष्ठा को
छूती हो तुम
एक अबला की सबल -
गाथा हो तुम
मर्यादित रिश्तों की
भाषा हो तुम
एक सुलझी हुई नारी की
पहचान हो तुम
© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!
4 comments:
acchi rachna hai...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
shasakt ,sanyamit rachana achhilagi .abhar ji
सार्थक रचना ..अच्छी लगी
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