सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, February 19, 2011

बोलता प्रश्न

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क्यों नहीं है उसको
बोलने का अधिकार
या फिर अपनी बात को
कहने का अधिकार,
क्यों नहीं है अपनी पीड़ा को
बाँटने का अधिकार,
क्यों नहीं है
ग़लत को ग़लत
कहने का अधिकार !
क्यों चारों ओर उसके
लगा दी जाती है
कैक्टस की बाड़
क्यों कर दिया जाता है खामोश
क्यों नहीं बोलने दिया जाता उसे ?
यह प्रश्न अनवरत
उठता रहता है मन में,
बिजली- सी कौंधती रहती है
मस्तिष्क में,
बचपन से अब तक
कभी भी अपनी बात को
निर्द्वंद्व होकर कहने की
हिम्मत नहीं जुटा पाई है वह ।
जब भी कुछ कहने का
करती है प्रयास
मुँह खोलने का
करती है साहस
वहीं लगा दिया जाता है
चुप रहने का विराम ।
आठ की अवस्था हो
या फिर साठ की
वही स्थिति, वही मानसिकता
आखिर किससे कहे
अपनी करुण-कथा
और किसको सुनाए
अपनी गहन व्यथा ।
जन्म लेते ही
समाज द्वारा तिरस्कार
पिता से दुत्कार
फिर भाइयों के
गुस्से की मार
ससुराल में
पति के अत्याचार
सास-ननद के
कटाक्षों के वार
वृद्धावस्था में
बेटे की फटकार
बहू का विषैला व्यवहार
सब कुछ सहते-सहते
टूट जाती है वह,
क्योंकि उसे तो
मिले हैं विरासत में
सब कुछ सहने
और
कुछ न कहने के संस्कार ।
यदि ऐसा ही रहा
समाज का बर्ताव
मिलते रहे
उसे घाव पर घाव,
ऐसी ही रही चुप्पी
चारों ओर
तो शायद मन की घुटन
तोड़ देगी अंतर्मन को
अंदर-ही-अंदर,
फैलता रहेगा विष
घुटती रहेंगी साँसें
टूटती रहेंगी आसें
तो जिस बात को
वह करना चाहती है
अभिव्यक्त
वह उसके साथ ही
चली जाएगी,
फिर इसी तरह
घुटती रहेंगी बेटियाँ,
ऐसे ही टूटता रहेगा
उनका तन और मन,
होते रहेंगे अत्याचार
होती रहेंगी वे समाज की
घिनौनी मानसिकता का शिकार ।
कब बदलेगा समय,
जब समाज के
कथित ठेकेदार
समाज की चरमराई
सड़ी-गली व्यवस्था को
मजबूती देने के लिए
आगे आएँगे,
क़दम बढ़ाएँगे,
कब आएगा वह दिन
जब नारी की बात
उसकी पीड़ा,उसकी चुभन,
उसके मन का संत्रास
समझेगा यह समाज,
विश्वास है उसे
कि वह दिन आएगा
जरूर आएगा ।

2008-10 सर्वाधिकार सुरक्षित!

डॉ.मीना अग्रवाल
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7 comments:

Shalini kaushik said...

nari ki dasha darshati bahut sundar kavita kintu ye to aapne bhi mana ki nari hi nari ki sahyogi nahi hai..

Shikha Kaushik said...

nari man ki vyatha ko shabdon me bakhoobi vyakt kiya hai aapne .badhai .

निर्मला कपिला said...

यह प्रश्न अनवरत
उठता रहता है मन में,
बिजली- सी कौंधती रहती है
मस्तिष्क में,
नारी जीवन की त्रास्दी की मार्मिक अभिव्यक्ति।

vandana gupta said...

यक्ष प्रश्न है …………मगर अब बदल रहा है समाज और पूरा भी बदल जायेगा वक्त के साथ्।

LAXMI NARAYAN LAHARE said...

BAHUT ACHHA RACHANA SUNDAR .DHER
SUBHKAAMNAAYEN

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नारी की व्यथा को उकेरती अच्छी प्रस्तुति

डा.मीना अग्रवाल said...

आपने मेरी कविता को मान दिया इसके लिए मैं आप सबकी बहुत-बहुत आभारी हूँ। आशा है आपका स्नेह इसी प्रकार मिलता रहेगा।