सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Tuesday, February 1, 2011

अब चौखट के बाहर आना है !

पुरुष सत्ता की दीवारों को तोड़कर ,
लिंग भेद की सलाखों को मरोड़कर ,
सोयी आत्मशक्ति को जगा कर ,
दिमाग की बंद खिड़की खोलकर ,
हे स्त्री ! तुझको अब चौखट के बाहर आना है ,
पुरुष समान जग में सम्मान पाना है ।
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जला देनी है वे किताबें ;जो कहती है
तुम कोमल ,निर्बल और कमजोर हो ,
तुम कली नहीं ;तुम फूल नहीं ;
तुम प्रस्तर सम कठोर हो ,
आंसू से नम इन पलकों को बस लक्ष्य पर टिक जाना है ,
हे स्त्री !तुझको अब चौखट के बाहर आना है ।
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पुरुष बैसाखी ने तेरी चलने की ताकत छीनी है ,
तन की सुन्दरता में उलझा ;मन की शक्ति हर लीनी है ,
नैनों के तीर नहीं ;तुझको प्रज्ञा का बल दिखलाना है ।
हे स्त्री !तुझको अब चौखट के बाहर आना है ।
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6 comments:

Shalini kaushik said...

shabd kam pad gaye hain is prernadayak kavita ke liye.bahut prerak kavita.aabhar..........

Rashmi Swaroop said...

behatareen... last para to kamaal hai bas! :)
hats off!
(fully motivated)

Alokita Gupta said...

Kammal ka likha hai bahut hi ojpurn aur prernadayi hai yah kavita.
Kisi ne kaha hai parashrit vyakti kabhi khush nahi ho sakta apni khushi pane ke liye hume aatmnirbhar banana hin hoga hume chaukhat se bahar nikalna hin hoga

रेखा श्रीवास्तव said...

bahut sundar kavita , vaakai apani shakti ko pahchanana bahut hi jaroori hai. jaroori nahin ki ghar se bahar kadam rakh kar hi use ko pradarshit kiya jaay. khud men aatmvishvaas aur dridhta hi paryapt hai. vah nari sampurn hai jo apane aur apane adhikaron ka hanan hone na de.

palash said...

जो नर से ना हारी
उसे ही कहते है नारी
जो ममता की मूरत प्यारी
उसे ही कहते है नारी
जो देवों पे भी पडी भारी
उसे ही कहते है नारी
जिसके दम पर दुनिया सारी
उसे ही कहते है नारी


आपने बह्त सही कहा । आभार

रचना said...

excellent