उन्हें कभी एकमत
होते नहीं देखा था
उस दिन जब वह
जन्मी थी
कुछ जोड़े नयन
सजल थे
कुछ की आँखें
चमक रही थी
कोई आश्चर्य नहीं था
क्यूंकि
उन्हें कभी एकमत
होते नहीं देखा था
पर एक आश्चर्य
उस दिन सबने
सुर मिलाया
शुभचिंतकों ने ढाँढस
दुश्चिन्तकों ने व्यंग्य कसा
बधाई हो
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5 comments:
बहुत अच्छी रचना। मौजूदा समाज की सोच को रेखांकित करती रचना। उस समाज को जो बेटी के पैदा होने पर निराश होती है, लेकिन उपरी दिखावे के लिए कह देती है कि 'लक्ष्मी आई है'। समाज को आईना दिखाने के लिए बधाई।
bahut sateek vyangyatmak kavita.badhai lakshmi ke aane ki..
yatharth ko bahut sahi andaj me prastut kiya hai .
कुछ तो नया है!
दिखावा सच मेँ बहुत चोट पहुँचाती है।
Dhanyawaad aap sabhi ka
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