सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, February 13, 2011

मेरी बेटी

है बड़ी मासूम उसकी मुस्कुराहट क्या कहूँ !
वो सदा पहचान जाती मेरी आहट क्या कहूँ !
एक पल भी दूर उससे रह नहीं सकती हूँ मैं
गोद में ही लेते उसको मिलती राहत क्या कहूँ !
देखते ही स्नेह से चूम लेती उसको मै
मखमली बाँहों से उसका घेर लेना क्या कहूँ !
उसकी किलकारी मेरे कानों में अमृत घोलती
माँ! मुझे कहकर के उसका खिलखिलाना क्या कहूँ !
वो मेरी बेटी ,मेरा सर्वस्व ,मेरी जिन्दगी
है मेरे वो दिल की धड़कन और ज्यादा क्या कहूँ !

6 comments:

Kailash Sharma said...

बेटी का होना ही अपने आप में एक वरदान है, इसके बाद कहने की ज़रूरत ही नहीं होती ..

neelima garg said...

too good...

Shalini kaushik said...

bahut pyar hota hai maa ke man me aapne bahut bhavpravan kavita likhi hai.dil chhoo gayee..

Unknown said...

और क्या कहूँ?
बेटी के जन्म पर उत्सव मनाओ....

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " said...

bahut sundar

किरण राजपुरोहित नितिला said...

betiya is kaaynaat ke liye beshkeemat nemat hai !!
ise sahejana hai !!