सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Friday, February 11, 2011

बधाई हो घर में लक्ष्मी आई है

उन्हें कभी एकमत
होते नहीं देखा था 
उस दिन जब वह 
जन्मी थी 
कुछ जोड़े नयन 
सजल थे 
कुछ की आँखें 
चमक रही थी 
कोई आश्चर्य नहीं था 
क्यूंकि 
उन्हें कभी एकमत 
होते नहीं देखा था 
पर एक आश्चर्य 
उस दिन सबने 
सुर मिलाया 
शुभचिंतकों ने ढाँढस
दुश्चिन्तकों ने व्यंग्य कसा 
बधाई हो 
घर में लक्ष्मी आई है 

© 2008-10 सर्वाधिकार सुरक्षित!

5 comments:

Atul Shrivastava said...

बहुत अच्‍छी रचना। मौजूदा समाज की सोच को रेखांकित करती रचना। उस समाज को जो बेटी के पैदा होने पर निराश होती है, लेकिन उपरी दिखावे के लिए कह देती है कि 'लक्ष्‍मी आई है'। समाज को आईना दिखाने के लिए बधाई।

Shalini kaushik said...

bahut sateek vyangyatmak kavita.badhai lakshmi ke aane ki..

Shikha Kaushik said...

yatharth ko bahut sahi andaj me prastut kiya hai .

Unknown said...

कुछ तो नया है!
दिखावा सच मेँ बहुत चोट पहुँचाती है।

Alokita Gupta said...

Dhanyawaad aap sabhi ka