सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, March 30, 2009

प्रेम - व्यापार

देव हो या दानव

वासना का समुद्र

जब - जब उफनता हैं

सयम का कगार टूट जाता हैं ।

सुंदर प्रकाशवान मछली

सम्मोहन के जाल मै

स्वयं फँस जाती हैं ।

तामसी - वृत्तियाँ

प्यार के अनछुये आकाश पर

काले बादल बन छा जाती हैं ।

चारो और फैले

तामसी कोहरे के भीतर

बलात्कार होता हैं

चीखे उभरती हैं

पर

सत्यवती को बचाने वाला

कोई नहीं आता ।

चीखे मौन हो जाती हैं

वासना तृप्त

चलता रहता हैं

संसार का प्रेम - व्यापार



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