हिन्दी ब्लॉगर ऋषभ देव शर्मा जी नारी आधरित विषयों पर अपनी राय ब्लॉग के माध्यम से हम तक पहुचाते रहे हैं । उनकी कलम से हमेशा एक संवेदन शील बात निकलती रही हैं जिस मे नारी के प्रति एक ऐसा नजरिया देखने को मिला हैं जो कम लोग रखते हैं ।
इस कविता को यहाँ पोस्ट करके हम शायद बस इतना कर रहे के की उनके कलम से निकली "अपनी बात को " एक बार फिर दोहरा रहे हैं ।
मर्दानगी
गर्वीले चेहरे पर
अकड़ी हुई मूँछें
बाहों पर उछलती हुई मछलियां
गरज़दार आवाज़
मर्दानगी
रखी है इतिहास के शोकेस में
चाबी भरने पर आवाज़ भी करती है
जब जम जाती है इस पर धूल
तो क्रेज़ी स्त्रीत्व अपने कोमल हाथों से
इसे झाड़-बुहार कर
फिर रख देता है शोकेस में
जब पुरानी पड़ जाती है
याकि मर जाती है
तो पुरानी की जगह नई सजा दी जाती है
मर्दानगी
खुश है अपने सजने पर
साल दर साल
पीढ़ी दर पीढ़ी
शोकेस में सजती आ रही है
मर्दानगी
अकड़ी हुई मूँछें
बाहों पर उछलती हुई मछलियां
गरज़दार आवाज़
मर्दानगी
रखी है इतिहास के शोकेस में
चाबी भरने पर आवाज़ भी करती है
जब जम जाती है इस पर धूल
तो क्रेज़ी स्त्रीत्व अपने कोमल हाथों से
इसे झाड़-बुहार कर
फिर रख देता है शोकेस में
जब पुरानी पड़ जाती है
याकि मर जाती है
तो पुरानी की जगह नई सजा दी जाती है
मर्दानगी
खुश है अपने सजने पर
साल दर साल
पीढ़ी दर पीढ़ी
शोकेस में सजती आ रही है
मर्दानगी
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