सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Tuesday, July 5, 2011

अफ़सोस

[goole se sabhar]



''मैं''

केवल एक देह नहीं

मुझमे भी प्राण हैं .

मैं नहीं भोग की वस्तु

मेरा भी स्वाभिमान .


मेरे नयन मात्र झील

से गहरे नहीं ;

इनमे गहराई है

पुरुष के अंतर्मन को

समझने की ,

मेरे होंठ मात्र फूल की

पंखुडियां नहीं ;ये खुलते

हैं जिह्वा जब बोलती है

भाषा उलझने की .


मेरा ह्रदय मोम सा

कोमल नहीं ;इसमें भावनाओं

का ज्वालामुखी है

धधकता हुआ ,

मेरे पास भी है मस्तिष्क

जिसमे है विचार व् तर्कों

का उपवन

महकता हुआ .


मेरा भी वजूद है

मैं नहीं केवल छाया

पर अफ़सोस पुरुष

इतना बुद्धिमान होकर भी

कभी ये समझ

नहीं पाया .


शिखा कौशिक

http://shikhakaushik666.blogspot.com

9 comments:

Shalini kaushik said...

मेरा भी वजूद है
मैं नहीं केवल छाया
पर अफ़सोस पुरुष
इतना बुद्धिमान होकर भी
कभी ये समझ
नहीं पाया .
bahut sundar bhavon se bhari abhivyakti.badhai shikha ji

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

शिखा जी, बहुत गहरी बात कही आपने। बधाई।

पर काश, इसे लोग समझ भी पाते।

------
जादुई चिकित्‍सा !
इश्‍क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।

Manish Khedawat said...

bahut khoob likha hai shikha zi !
badhai !!
________________________________
किसी और की हो नहीं पाएगी वो ||

Vishnukant Mishra said...

nari nahi kamini kewal kam prem askti hriday ki ,
wah to hai shrsti se uppar duniya ki wah pragti shrii hai .

Vishnukant Mishra said...

nari nahi kamini kewal kam prem askti hriday ki ,
wah to hai shrsti se uppar duniya ki wah pragti shrii hai .

ANULATA RAJ NAIR said...

मेरा भी वजूद है

मैं नहीं केवल छाया

पर अफ़सोस पुरुष

इतना बुद्धिमान होकर भी

कभी ये समझ

नहीं पाया .


बहुत सार्थक रचना....
बधाई.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सार्थक रचना .... गहन बात को कहती हुई ...

Shambhu Choudhary said...

shandaaaaaaaaaaaaaaaaR..badhai

Manoj vyas said...

Very good emotional poem