घर बनाने का अधिकार
नारी का नहीं होता
घर तो केवल पुरुष बनाते हैं
नारी को वहाँ वही लाकर बसाते हैं
जो नारी अपना घर खुद बसाती हैं
उसके चरित्र पर ना जाने कितने
लाछन लगाए जाते हैं
बसना हैं अगर किसी नारी को अकेले
तो बसने नहीं हम देगे
अगर बसायेगे तो हम बसायेगे
चूड़ी, बिंदी , सिंदूर और बिछिये से सजायेगे
जिस दिन हम जायेगे
उस दिन नारी से ये सब भी उतरवा ले जायेगे
हमने दिया हमने लिये इसमे बुरा क्या किया
कोई भी सक्षम किसी का सामान क्यूँ लेगा
और ऐसा समान जिस पर अपना अधिकार ही ना हो
जिस दिन चूड़ी , बिंदी , सिंदूर और बिछिये
पति का पर्याय नहीं रहेगे
उस दिन ख़तम हो जाएगा
सुहागिन से विधवा का सफ़र
लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा
क्यूंकि
घर बनाने का अधिकार
नारी का नहीं होता
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