[goole se sabhar]
''मैं''
केवल एक देह नहीं
मुझमे भी प्राण हैं .
मैं नहीं भोग की वस्तु
मेरा भी स्वाभिमान .
मेरे नयन मात्र झील
से गहरे नहीं ;
इनमे गहराई है
पुरुष के अंतर्मन को
समझने की ,
मेरे होंठ मात्र फूल की
पंखुडियां नहीं ;ये खुलते
हैं जिह्वा जब बोलती है
भाषा उलझने की .
मेरा ह्रदय मोम सा
कोमल नहीं ;इसमें भावनाओं
का ज्वालामुखी है
धधकता हुआ ,
मेरे पास भी है मस्तिष्क
जिसमे है विचार व् तर्कों
का उपवन
महकता हुआ .
मेरा भी वजूद है
मैं नहीं केवल छाया
पर अफ़सोस पुरुष
इतना बुद्धिमान होकर भी
कभी ये समझ
नहीं पाया .
शिखा कौशिक
9 comments:
मेरा भी वजूद है
मैं नहीं केवल छाया
पर अफ़सोस पुरुष
इतना बुद्धिमान होकर भी
कभी ये समझ
नहीं पाया .
bahut sundar bhavon se bhari abhivyakti.badhai shikha ji
शिखा जी, बहुत गहरी बात कही आपने। बधाई।
पर काश, इसे लोग समझ भी पाते।
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जादुई चिकित्सा !
इश्क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।
bahut khoob likha hai shikha zi !
badhai !!
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किसी और की हो नहीं पाएगी वो ||
nari nahi kamini kewal kam prem askti hriday ki ,
wah to hai shrsti se uppar duniya ki wah pragti shrii hai .
nari nahi kamini kewal kam prem askti hriday ki ,
wah to hai shrsti se uppar duniya ki wah pragti shrii hai .
मेरा भी वजूद है
मैं नहीं केवल छाया
पर अफ़सोस पुरुष
इतना बुद्धिमान होकर भी
कभी ये समझ
नहीं पाया .
बहुत सार्थक रचना....
बधाई.
सार्थक रचना .... गहन बात को कहती हुई ...
shandaaaaaaaaaaaaaaaaR..badhai
Very good emotional poem
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