सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Tuesday, April 5, 2011

क्योंकि हमें जीना है

हमें नहीं छापनी ख़बरें औरतों पर ज़ुल्म की
उनकी आज़ादी पर अब और चर्चा नहीं करनी
उनकी बेड़ियों की बात नहीं करनी
हमें अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जैसा कोई दिवस
नहीं मनाना
क्योंकि हमें जीना है
जैसे तुम जीते हो
तुम, जो स्त्री नहीं हो
और आधी आबादी
आधी दुनिया भी नहीं बनना हमें
हम पूरी हैं
जैसे एक पूरी गोल रोटी
क्या तुम आधी रोटी खाते हो बस

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3 comments:

vandana gupta said...

सुन्दर भाव्।

रचना said...

kyaa baat haen bas aesi hi avvaj buland hotee rahey ek din gol roti hamaari hogi

Vishnukant Mishra said...

hmney yeh kaha hai
koi jb karta hai atyachar..pyar.
nirman ya snghar
wah nahi dekhta
ling,varg kchetra athava
mere ya tumhare honey ka adhikar.
uskey granit bhavo mey to
basa hai keval aur keval sanhar.
istiye tumahara kathya hai
hmey sahrs sweekar.
vishnu kant