सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Friday, July 2, 2010

शुभकामना

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मैंने तुम्हारे लिए
एक खिड़की खोल दी है
ताकि तुम
स्वच्छंद हवा में,
अनंत आकाश में,
अपने नयनों में भरपूर उजाला भर कर ,
अपने पंखों को नयी ऊर्जा से सक्षम बना कर
क्षितिज के उस पार
इतनी ऊँची उड़ान भर सको
कि सारा विश्व तुम्हें देखता ही रह जाए !

मैंने तुम्हारे लिए
बर्फ की एक नन्हीं सी शिला पिघला दी है
ताकि तुम पहाड़ी ढलानों पर
अपना मार्ग स्वयम् बनाती हुई
पहले दरिया तक पहुँच जाओ
तदुपरांत उसके अनंत प्रवाह में मिल
सागर की अथाह गहराइयों में
अपने स्वत्व को समाहित कर
उससे एकाकार हो जाओ
और उसके उस अबूझे रहस्य का हिस्सा बन जाओ
जिसे सुलझाने में
सारा संसार सदियों से लगा हुआ है !

मैंने तुम्हारे लिए
तुम्हारे घर आँगन की क्यारी में
सौरभयुक्त सुमनों के कुछ बीज बो दिये हैं
ताकि तुम उनमें नियम से खाद पानी डाल
उन्हें सींचती रहो
और समय पाकर तुम्हारे उपवन में उगे
सुन्दर, सुकुमार, सुगन्धित सुमनों के सौरभ से
सारा वातावरण गमक उठे
और उस दिव्य सौरभ की सुगंध से
तुम अपने काव्य को भी महका सको
जिसे पढ़ कर सदियों तक लोग
मंत्रमुग्ध एवं मोहाविष्ट हो बैठे रह जाएँ !

मैंने तुम्हारे लिए
मन की वीणा के तारों को
एक बार फिर झंकृत कर दिया है
ताकि तुम उस वीणा के उर में बसे
अमर संगीत को
अपनी सुर साधना से जागृत कर सको
और दिग्दिगंत में ऐसी मधुर स्वर लहरी को
विस्तीर्ण कर सको
कि सारी सृष्टि उसके सम्मोहन में डूब जाए
और तुम उस दिव्य संगीत के सहारे
सातों सागर और सातों आसमानों को पार कर
सम्पूर्ण बृह्मांड पर अपने हस्ताक्षर चस्पाँ कर सको !
तथास्तु !


साधना वैद

8 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर सश्क्त रचना है बधाई साधना जी।

Rashmi Swaroop said...

wow.... :)
sachmuch... bahut hi sundar hai !
infact sundarta se ot-prot hai... aur utni hi damdaar bhi !

neelima garg said...

bahoot sundar...

RADHIKA said...

साधना जी मेरे पास शब्द नही हैं आपकी इस पोस्ट की तारीफ के लिए ,आखरी पैराग्राफ तो लगता हैं जैसे मानो आपने मेरे लिए ही लिखा हैं .अब हो या नही मैं उसे अपने लिए लिखा हुआ मान कर खुश हूँ.इस अप्रतिम रचना के लिए बहुत बहुत आभार
वीणा साधिका

Sadhana Vaid said...

राधिका जी आपको रचना पसंद आयी इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! मेरी रचना उन सभी लेखिकाओं को समर्पित है जिनके ह्रदय में सृजनात्मकता का एक सैलाब हिलोरें लेता रहता है और वे उससे अनजान रहती हैं ! यदि उस सैलाब को उचित दिशा और मार्ग मिल जाये तो वे कीर्तिमान स्थापित करने की प्रतिभा रखती हैं ! वे अपनी इस सुषुप्त प्रतिभा को पहचान सकें और निखार सकें यह रचना इसी दिशा में एक छोटा सा प्रयास भर है ! एक बार पुन: आपकी आभारी हूँ !

आशा जोगळेकर said...

और समय पाकर तुम्हारे उपवन में उगे
सुन्दर, सुकुमार, सुगन्धित सुमनों के सौरभ से
सारा वातावरण गमक उठे
और उस दिव्य सौरभ की सुगंध से
तुम अपने काव्य को भी महका सको
जिसे पढ़ कर सदियों तक लोग
मंत्रमुग्ध एवं मोहाविष्ट हो बैठे रह जाएँ !
बहुत सुंदर साधनाजी बधाई इस सशक्त रचना के लिये ।

किरण राजपुरोहित नितिला said...

bahut badhiya Sadhana ji
itani badhiya kavita bahut kam padhne ko milti hai .
bar bar padhkar utsaah se bhar jaati hu .
shukriya !!

किरण राजपुरोहित नितिला said...

ek maa apni beti ko kya kya nahi de sakti hai !!!
itne sundar bhaav kam hi padhne ko milte hai .